भरूच. जिले के पारसीवाडा के सिविल अस्पताल पर लगी नाम पट्टिकाएं बताती हैं कि इसकी जर्जर बिल्डिंग 1873 से 1883 के बीच बनी है. कभी इस अस्पताल को पारसी समुदाय ने बनवाकर सरकार को सौंपा था. 1980 तक अस्पताल में डॉक्टर बैठते थे. अब इसपर स्थानीय लोगों का कब्जा है.
कुछ मकान हैं 100 साल पुराने
पारसीवाडा के आसपास कुछ रिहायशी मकान हैं, जो 100 से अधिक साल पुराने हैं. वहीं, अंग्रेजों के जमाने का बना सीरियन चर्च भी है. एक टावर है जो ध्वस्त हो चुका है. एक मस्जिद के सामने पुरातात्विक अवशेष होने का बोर्ड लगा है. कभी यहीं अंग्रेजों का कलेक्ट्रेट ऑफिस भी था. अब भी उसके अवशेष देखे जा सकते हैं.
लड़कियों के लिए पहला स्कूल
भरूच पारसी पंचायत के कोषाध्यक्ष और बैंक की नौकरी से रिटायर्ड होमी भाभा बताते हैं कि पारसियों ने भरूच में लड़कियों के लिये पहला स्कूल ‘मोटला बाई वाडिया गर्ल्स स्कूल’ खोला था. यहां एसएससी(11वीं) तक की पढ़ाई होती थी.
वे कहते हैं, “जहां तक मुझे याद है, मुझसे पहले की तीन पीढ़ियों ने यहीं से अपनी पढ़ाई पूरी की है. साल 2006 में इस स्कूल को भी बंद करना पड़ा.” वे कहते हैं कि सरकार की लापरवाही की वजह से पुराने संस्थाओं को बचाया नहीं जा सका है. वे कहते हैं, “सरकार का ध्यान इधर नहीं रहा है, हाल के कुछ सालों में विकास के सारे काम नये इलाकों में हो रहे हैं.”
1957 के बाद से पलायन
पारसीवाडा में कभी चार हजार से ज्यादा पारसी समुदाय के लोग रहते थे. अब पूरे भरूच में इनकी आबादी 150 से भी कम रह गयी है. होमी भाभा बताते हैं कि बेहतर शिक्षा और रोजगार की तलाश में पारसी समुदाय यहां से मुंबई, पुणे, सूरत और नवसारी जैसे जगहों में बस गये हैं. वे कहते हैं कि पहले यहां कल-कारखाने नहीं थे, इसलिये 1957 के बाद से ही पारसी समुदाय भरूच से पलायन करना शुरू कर दिया था.
‘यहां पर शांति है’
होमी भाभा से मिलवाने वाले जावेद कहते हैं कि ‘यहां पर शांति है.’ सरकार ने भले कुछ काम नहीं करवाया हो लेकिन इसके लिये कोई शिकायत नहीं है. “पानी-बिजली यहां रहती है, सरकार से और क्या चाहिये?”
वहीं, जर्जर हो चुके सिविल अस्पताल के एक बड़े हॉल में क्रिकेट खेल रहे युवाओं में एक “मोदी नहीं चाहिये” कहता है. सभी कैमरे के सामने बोलने से मना करते हैं.