ऊना. शिमला हाई कोर्ट के आदेश के बाद रेलवे की ज़मीन से अवैध कब्ज़े हटाए जाने से कुष्ठ आश्रम में रह रहे कुष्ठ रोगियों के 22 परिवार सड़क पर आ गए है. यह सभी लोग सर छिपाने के लिए दर-बदर भटकने को मजबूर हो गये हैं. लेकिन ना ही सरकार के कान पर जूँ रेंग रही है और ना ही प्रशासन उनकी कोई सुनवाई कर रहा है. बता दें कि बीते शुक्रवार चार मंदिर, एक सरकारी स्कूल, एक गौशाला और कुष्ठ आश्रम पर बुलडोज़र चला था.
सरकार से ज़मीन उपलब्ध करवाने की मांग
इन 22 परिवारों के करीब 50 लोगों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर होना पड़ रहा है. यह कुष्ठ आश्रम ऊना में करीब 30 साल पुराना है और यहाँ रहने वाले सभी परिवार अब स्थायी निवासी और मतदाता भी बन चुके हैं. हालांकि इन्हें कोर्ट का नोटिस मिला था, जिसके बाद इन परिवारों ने पिछले दो महीनों से कई बार सरकार और प्रशासन का दरवाजा खटखटाया और आश्रम के लिए ज़मीन उपलब्ध करवाने की माँग की, लेकिन उन्हें हर जगह से नाकामी ही हाथ लगी. यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों ने ज़मीन के लिए आवेदन करने पर ‘देख लेंगे’ का आश्वासन देकर इन परिवारों को चलता कर दिया, प्रशासनिक अधिकारी के ये बड़े बोल मीडिया के कैमरों में भी कैद हो गए.
वोट बैंक और घोषणायें
इस कुष्ठ आश्रम में कई राजनेता वोट बैंक के खातिर कई योजनाओं की घोषणा करते आये हैं, यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण योजना स्वच्छता अभियान की शुरुआत भी सांसद अनुराग ठाकुर यहां से कर चुके हैं. जबकि पक्ष विपक्ष के अनेकों राजनेता भी यहां अक्सर आते रहते थे और कई संस्थाओं सहित एमपी, एमएलए का फंड भी यहां विकास कार्यों में लग चुका है. लेकिन अब कोई राजनेता इन परिवारों की फ़रियाद नहीं सुन रहा है. बेघर हुए इन परिवारों को अब अगर किसी से उम्मीद है तो वह सिर्फ मीडिया ही है.
खाने पीने की व्यवस्था
इन बेघर परिवारों के समर्थन में हालाँकि कुछ समाज सेवी संस्थाएं सामने आयी हैं. इन संस्थाओं ने ही इनके खाने-पीने की व्यवस्था की है. जो काम प्रशासन का होना चाहिए था, उस काम को ये संस्थाएं कर रही हैं और प्रशासन खामोश बैठ कर तमाशा देख रहा है. बेघर होने के एक दिन बाद भी प्रशासन इनके लिए रहने की व्यवस्था नहीं कर सका है, जबकि ये परिवार पिछले करीब डेढ़ महीने से इसकी मांग कर रहे थे. अब समाजसेवी संस्थाओं ने भी मानवीय संवेदना के आधार पर इनके रहने की व्यवस्था किये जाने की मांग की है.