अनुपम मिश्र का देहांत पिछले वर्ष 19 दिसम्बर को हुआ था और अब इसको एक साल होने जा रहा है. उन्होंने अपना जीवन सरलता, सहजता और सादगी के साथ गुजारा. उन्होंने अपने आपको किसी पर भी नहीं थोपा और दूसरे को बताया कि सादगी से कैसे जिया जाता है. अनुपम मिश्र गाँधीवादी सोच रखते थे. वे मानवता और प्रकृति के बीच गहरे रिश्ते बनाने का काम जीवन भर करते रहे. उनकी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ इसका प्रमाण है.
‘आज भी खरे हैं तालाब’ में अनुपम मिश्र ने भारत में उपलब्ध जल प्रबंधन का उल्लेख किया है. अपनी रचनाओं से उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया. वे अपनी रचनाओं में हमें याद दिलाते हैं कि हमें रामभरोसे या राजभरोसे रहने के बजाय समाज-भरोसे रहना चाहिये.
अनुपम मिश्र ने लंबे समय तक हमें आधुनिकता तथा नयी तकनीक पर बहुत अधिक भरोसा करने से चेताया. वे हमें चेताते रहे कि आधुनिकता के पहले भी जीवन था जो प्रगति और गति को सहज और सुगम बनाता था. वे हमें आधुनिकता पर आश्रित नहीं होने की सलाह देते हैं. उन्हें पानी व पर्यावरण का साहित्यिक गुरु भी कहा जाता है. उन्हें 1996 में इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार से नवाजा गया. उनका जाना बहुत दुखद है.