नई दिल्ली. देश में उच्चतम न्यायालय द्वारा 11 मई 2022 को दिए गये महत्वपूर्ण फैसले के बाद से देशद्रोह जैसे कानून के दुरुपयोग को लेकर चल रही बहस एक बार फिर से शुरू हो गई है. देश में इस कानून के तहत कई लोग अभी भी सालों से जेलों में बंद हैं और कई लोग लंबे कानूनी दांवपेचों और जद्दोजहद के बाद जमानत पा सके हैं. 2010 से लेकर 2022 तक देशद्रोह कानून के तहत 13 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
जब तक पुनर्विचार नहीं हो जाता सरकारें दर्ज नहीं करेंगी मुकदमा
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य आईपीसी की धारा 124ए के तहत नए केस दर्ज करने से परहेज करेंगे. उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के प्रावधानों पर फिर से विचार करने और पुनर्विचार करने की अनुमति दे दी है, जो देशद्रोह को अपराध बनाती है. इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जिनके खिलाफ देशद्रोह के मामले चल रहे हैं और वे जेल में बंद हैं, वे लोग जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
पुनर्विचार का काम 3 से 4 महीने में पूरा कर लेना चाहिए
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार का काम 3 से 4 महीने में पूरा कर लेना चाहिए. इस महत्वपूर्ण सुनवाई के बाद उम्मीद की जा रही है कि सालों से विवाद में बने हुए इस कानून को लेकर अब कुछ ठोस फैसला हो सकेगा.
इससे पहले साल 2021 में भारत के मुख्य न्यायाधीश एक मामले की सुनवाई करते हुए सवाल किया था कि महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इस्तेमाल किया गया एक औपनिवेशिक कानून आजादी के 75 साल बाद भी कानून की किताब में क्यों हैं. मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि सरकार द्वारा देशद्रोह या भारतीय दंड संहिता की धारा 124A का दुरुपयोग किया जा सकता है.
1962 का उच्चतम न्यायालय का फैसला
उच्चतम न्यायालय ने साल 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय सुनाया था जिसके तहत न्यायालय ने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी एवं हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक ही सीमित कर दिया गया था.
क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2015 से लेकर 2020 तक इसके देशद्रोह कानून के तहत कुल 356 मामले दर्ज हुए और 548 लोगों की गिरफ्तारी हुई. इसमें 12 लोगों की सजा हुई. 2015 में कुल 35 मामले दर्ज हुए और 48 लोगों की गिरफ्तारी हुई, 2016 में 51 मामले और 48 गिरफ्तारी, 2017 में 51 मामले और 228 गिरफ्तारी, 2018 में 70 मामले और 56 गिरफ्तारी, 2019 में 93 मामले और 99 गिरफ्तारी और 2020 में कुल 73 मामले दर्ज हुए और 44 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी.
राज्य | देशद्रोह के मामले (2010-2020) |
बिहार | 168 |
तमिलनाडु | 139 |
उत्तर प्रदेश | 115 |
झारखंड | 62 |
कर्नाटक | 50 |
उड़ीसा | 30 |
हरियाणा | 29 |
जम्मू और कश्मीर | 26 |
पश्चिम बंगाल | 22 |
पंजाब | 21 |
गुजरात | 17 |
हिमाचल प्रदेश | 15 |
दिल्ली | 14 |
लक्षद्वीप | 14 |
केरल | 14 |
एनसीआरबी द्वारा हर साल जारी आंकड़ों के अनुसार, 2010 से लेकर 2020 तक, बिहार में सबसे अधिक 168 राजद्रोह के मामले दर्ज किए गए. इसके बाद तमिलनाडु में 139 और उत्तर प्रदेश में 115 दर्ज किए गए.
राज्य | मुख्यमंत्री | केस |
बिहार | नीतीश कुमार | 168 |
तमिलनाडु | जयललिता (2011 से नवंबर 2016 तक) | 139 |
उत्तर प्रदेश | योगी आदित्यनाथ | 115 |
झारखंड | रघुबर दास (2014 से 2019 तक ) | 62 |
कब लाया गया था कानून
आज के समय तक चले आ रहे राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में सबसे पहले लाया गया था, तत्कालीन नीति निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए, क्योंकि गलत राय से सरकार और राजशाही दोनों के लिए खतरा पैदा कर सकती थी.
राजद्रोह कानून का मसौदा सबसे पहले साल 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन साल 1860 में भारतीय दंड सहिता (Indian Penal Code) लागू करने के दौरान इस कानून को भारतीय दंड सहिता में शामिल नहीं किया गया था. हालांकि साल 1870 में सर जेम्स स्टीफन द्वारा एक संशोधन प्रस्तुत किया गया और इसके जरिये भारतीय दंड संहिता 1860 में धारा 124A को जोड़ दिया गया था.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1947 में मिली आजादी से पहले भारत में औपनिवेशिक अधिकारी ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को रोकने के लिये राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया करते थे. तत्कालीन प्रशासकों ने महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, जवाहरलाल नेहरू से लेकर भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत उनके “राजद्रोही” भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया था. ये ही कारण है कि राजद्रोह कानून का आज के समय में इतना बड़े स्तर पर उपयोग औपनिवेशिक काल की याद दिलाता है.
क्या है राजद्रोह कानून की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 124A के तहत राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित, संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है. विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएं शामिल होती हैं.
क्या है सजा
धारा 124A के तहत राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है. राजद्रोह के अपराध में तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है.
वो चर्चित चेहरे जिनपर लगा देशद्रोह
देशद्रोह के कानून में फंसकर कई बड़े और चर्चित चेहरे जेल पहुंच गए इनमें सितंबर 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, अक्टूबर 2015 में आरक्षण की मांग करने वाले गुजरात कांग्रेस के नेता हार्दिक पटेल, फरवरी 2016 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष और अभी कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार, जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद, फरवरी 2021 में कांग्रेस नेता अजय राय, सितंबर 2021 में यूपी के पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी और दिसंबर 2021 में धर्मगुरु कालीचरण, अगस्त 2021 में सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, अप्रैल 2022 में महाराष्ट्र के अमरावती की सांसद नवनीत राणा, शामिल हैं.