शिमला. हिमाचल में एक बार फिर कांग्रेस सरकार के गठन के साथ ही निचले हिमाचल की जनता को आस बंधी है कि धर्मशाला को शीघ्र ही दूसरी राजधानी का दर्जा बहाल होगा, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषित किया था. निचले हिमाचल की जनता की भावनाओं को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ही धर्मशाला को राजधानी का दर्जा देने के लिए कदम उठाए थे.
साल 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला में शीतकालीन प्रवास के दौरान धर्मशाला को प्रदेश की दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा की थी. उस समय वीरभद्र सिंह ने कहा था कि धर्मशाला पूरी तरह प्रदेश की दूसरी राजधानी होने का हकदार था. इसी के चलते उन्होंने इसे प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा प्रदान किया है, लेकिन आज तक यह दर्जा बहाल नहीं किया गया.
धर्मशाला में विधानसभा भवन का निर्माण कराया
साढ़े 5 करोड़ रुपए खर्च करके धर्मशाला में मंत्रियों के लिए आवासीय परिसर का निर्माण भी इसी उदेश्य से करवाया गया था. तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी वीसी फारका ने 3 मार्च 2017 को जारी नोटिफिकेशन में भारतीय संविधान के आर्टिकल 154(1) के तहत प्रदेश के राज्यपाल को प्रदत्त कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हुए धर्मशाला को हिमाचल प्रदेश की दूसरी राजधानी के रूप में घोषित किया था.
भाजपा की जयराम सरकार ने इस नोटिफिकेशन को कभी भी मान्यता नहीं दी, जबकि धर्मशाला स्थित सचिवालय में भी मंत्रियों के बैठने की पूर्ण व्यवस्था है. तिब्बतियों के सवोच्च धर्मगुरू दलाई लामा का अस्थायी निवास स्थान भी यही है. तिब्बत निर्वासित सरकार, निर्वासित संसद और अब केंद्रीय तिब्बती प्रशासन भी धर्मशाला से संचालित होते हैं. यही नहीं सेना की 9वीं कोर राइजिंग स्टार का मुख्यालय भी धर्मशाला के योल में है. 9 कोर की स्थापना 2005 में की गई थी और इसका संचालन क्षेत्र जम्मू तक है.
170 साल पहले शुरू हुई थी धर्मशाला को राजधानी बनाने की कवायद
धर्मशाला को हिमाचल की राजधानी बनाने की शुरुआत 170 साल पहले हुई थी. ब्रिटिश हुकुमत में भारत के वायसराय एवं गवर्नर जनरल लॉर्ड एल्गिन साल 1852 में धर्मशाला आए. इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार को यह प्रस्ताव भेजा कि धर्मशाला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया जाए, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों को शिमला पसंद आ गया और धर्मशाला के राजधानी बनने के प्रयासों को पहला झटका लगा.
20 नवंबर 1853 को लॉर्ड एल्गिन की मौत के साथ ही यह बात भी दफन होकर रह गई, लेकिन इसके उपरांत निचले हिमाचल की जनता की भावनाओं को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने वर्ष 1994 में शीतकालीन प्रवास की परंपरा शुरू की थी. जनता के एक समान विकास के लिए ही वीरभद्र सिंह ने ही दिसंबर 2005 में पहली बार प्रदेश की राजधानी शिमला से बाहर विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आयोजन किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 25 दिसंबर 2006 को तपोवन में विधानसभा भवन की नींव का पत्थर रखा था.