रांची: झारखंड में राजभवन की तरफ से ओबीसी आरक्षण विधेयक वापस किए जाने के बाद हेमंत सरकार अब नई रणनीति तैयार कर रही है. इस बिल के लिए हेमंत सोरेन सरकार कानूनी सलाह ले रही है. अटॉर्नी जनरल ने इस विधेयक की समीक्षा करते हुए कहा था कि, इसके कई प्रावधान सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों से नहीं मिलते हैं.
अटॉर्नी जनरल से विचार विमर्श के बाद किया गया विधेयक वापस- राज्यपाल
राज्यपाल ने इसे वापस करते हुए कानूअटॉर्नी जनरल नी समीक्षा का सुझाव दिया था. सरकार इस पर विचार कर रही है. राज्यपाल ने अटॉर्नी जनरल से विचार विमर्श के बाद ही राज्यपाल ने इसे वापस लौटाया है साथ ही सरकार को इस पर कानूनी तथ्य समझने का सुझाव दिया है.
नबंवब 2022 को पारित हुआ था यह बिल
यह बिल नवंबर 2022 में पारित किया गया था. राज्य सरकार ने यह विधेयक तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस के समय में ही स्वीकृति के लिए राजभवन भेजा था. उन्होंने ही उस पर अटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी थी. इस बीच उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. वहीं अब अटॉर्नी जनरल की सलाह मिलने के बाद राज्यपाल ने उक्त विधेयक को वापस लौटा कर हेमंत सरकार को बड़ा झटका दिया है.
14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किया गया था आरक्षण
झारखंड में हेमंत सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 77 फीसदी करने वाला विधेयक पारित कर दिया था. जिसके बाद से प्रदेश में अनुसूचित जनजाति(ST) को 26 से बढ़ाकर 28 फीसदी, पिछड़ा वर्ग(OBC) को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी और अनुसूचित जाति (SC) के लिए 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी आरक्षण कर दिया गया था. दरअसल, झारखंड के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में 3 पार्टियां झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद शामिल हैं. इन तीनों दलों ने साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने-अपने घोषणापत्रों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का वादा किया था.