नई दिल्ली: समलैंगिक जोड़ों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया है. सीजेआई ने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है. उन्होंने केंद्र सरकार को समलैंगिकों के अधिकारों के लिए उचित कदम उठाने के दिशा-निर्देश जारी किए है.
सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक रिश्तों को पहले ही वैध बता चुका है. वहीं11 मई 2023 को 10 दिन की लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, अब सिर्फ फैसले का ही इंतजार था.
अदालत ने दिया ट्रांसजेंडर्स का उदाहरण
समलैंगिक शादी को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है, तो ऐसी शादी को मान्यता दी जाएगी, क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी. ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है. ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष से शादी करने का अधिकार है और ट्रांसजेंडर महिला और ट्रांसजेंडर पुरुष भी शादी कर सकते हैं. अगर अनुमति नहीं दी गई, तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा.
‘समलैंगिक सिर्फ शहरी और संभ्रांत ही नहीं’
सीजेआई ने कहा कि यह समलैंगिक लोग कोई अंग्रेजी बोलने वाले सफेदपोश आदमी नहीं है, जो समलैंगिक होने का दावा कर सकते हैं, बल्कि गांव में कृषि कार्य में काम करने वाली एक महिला भी समलैंगिक होने का दावा कर सकती है. यह छवि बनाना कि लोग केवल शहरी और संभ्रांत स्थानों में मौजूद हैं, उन्हें मिटाना है. शहरों में रहने वाले सभी लोगों को कुलीन नहीं कहा जा सकता.
‘संसद करे विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव’
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते समय कहा कि क्या एसएमए में बदलाव की जरूरत है, यह संसद को पता लगाना है और अदालत को विधायी क्षेत्र में प्रवेश करने में सावधानी बरतनी चाहिए? कई वर्ग इन परिवर्तनों के विरोध में हैं. विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव का फैसला संसद को करना है. विशेष विवाह अधिनियम को असंवैधानिक नहीं ठहरा सकते हैं.
सीजेआई ने कहा कि अगर विशेष विवाह अधिनियम को रद्द कर दिया जाता है, तो यह देश को स्वतंत्रता-पूर्व युग में ले जाएगा. यदि न्यायालय दूसरा दृष्टिकोण अपनाता है और SMA में शब्दों को पढ़ता है, तो वह विधायिका की भूमिका निभाएगा. संसद या राज्य विधानसभाओं को विवाह की नई संस्था बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते.
‘शादी बदल गई, यह अटूट सत्य’
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट इतिहासकारों का काम नहीं ले रहा है. विवाह की संस्था बदल गई है, जो संस्था की विशेषता है. सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक विवाह का रूप बदल गया है. शादी बदल गई है और यह एक अटल सत्य है और ऐसे कई बदलाव संसद से आए हैं.
‘समलैंगिक को बच्चा गोद लेने का अधिकार’
सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि केवल एक विवाहित विषमलैंगिक जोड़ा ही एक बच्चे को स्थिरता प्रदान कर सकता है. CARA विनियमन 5(3) अप्रत्यक्ष रूप से असामान्य यूनियनों के खिलाफ भेदभाव करता है. एक समलैंगिक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत क्षमता में ही गोद ले सकता है. इसका प्रभाव समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करने पर पड़ता है.
सीजेआई ने कहा कि अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से बाहर नहीं रखा गया है, लेकिन नियम 5 यह कहकर उन्हें रोकता है कि जोड़े को 2 साल तक स्थिर वैवाहिक रिश्ते में रहना होगा. जेजे अधिनियम अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से नहीं रोकता है, लेकिन केवल तभी जब CARA इसे नियंत्रित करता है लेकिन यह JJ अधिनियम के उद्देश्य को विफल नहीं कर सकता है.
CARA ने विनियम 5(3) द्वारा प्राधिकार को पार कर लिया है. CARA विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है. यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है. कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं.