सिरमौर (श्री रेणुका जी). कोयंबटूर से स्टेट फॉरेस्ट सर्विस के अधिकारियों का एक 35 सदस्यीय दल रेणुका भ्रमण के लिए पहुंचा है . टीम समन्वयक आईएफएस अनंत कुमार ने बताया कि यह दल इन दिनों भारत भ्रमण कर विभिन्न प्रकार के वन्यप्राणियों व जलवायु संबंधी जानकारी इकट्ठा कर रहा है.
डीएफओ रेणुका सुशील राणा ने इस दल को पेड़-पौधों संबंधी विभिन्न जानकारियां दी. दल ने रेणुका वेटलैंड में हर वर्ष आ रहे प्रवासी पक्षियों के बारे में कई तरह की जानकारी वन्य प्राणी विभाग के अधिकारियों से ली.
प्राणी विभाग के अधिकारी अश्विनी कुमार ने उन्हें बताया कि यहां हर वर्ष सात समुद्र पार से प्रवासी पक्षियों के झुण्ड यहां आते हैं, जो दो-तीन माह तक यहीं रहते हैं. यहां नर और मादा का ‘मिलन’ भी होता है. लेकिन ठंड कम हो जाने के कारण वह प्रजनन अपने देश में जाकर करते हैं. उन्होंने मिनी जू में पाले जा रहे विभिन्न जानवर व पक्षियों की जानकारी भी इस दल को दी.
पर्यावरण संरक्षित क्षेत्र है रेणुका वेटलैंड
दल के समन्वयक अनंत कुमार ने बताया कि यह पर्यावरण संरक्षित क्षेत्र है, जहां प्राकृतिक झील को संजो कर रखा गया है. उन्होंने कहा, “यहां की जलवायु वन्यप्राणियों के लिए काफी अनुकूल है. दल ने झील में पल रहे सौ साल पुराने कछुए की विभिन्न प्रक्रियाओं की जानकारी इकट्ठी की है. यह दल उत्तरी भारत के भ्रमण पर निकला हुआ है जिसमें गुजरात के 31, मध्यप्रदेश के दो व राजस्थान तथा जम्मू-कश्मीर के एक-एक अधिकारी शामिल हैं.
काडू वनस्पति बुखार में काफी कारगर
डीएफओ, रेणुका सुशील राणा ने बताया कि दल को एक दिन के इस कार्यक्रम में यहां की वनस्पति व रेणुका झील के रामसर साइट में आने के फायदे भी बताए गये. उन्होंने इस दल को बताया, “कोटी धिमान क्षेत्र में कडू नाम की वनस्पति होती है जो काफी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है. इस वनस्पति का उत्पादन भी काफी कम है. काडू बुखार इत्यादि में काफी कारगर साबित होती है.”
प्रवासी पक्षियों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि यहां 107 तरह के विभिन्न प्रकार के भारतीय व विदेशी पक्षी आते हैं. इनमें 20 प्रवासी पक्षी हैं. हिमाचल के सबसे स्वच्छ वैटलैंड में इसे गिना जाता है. जिसके चलते यहां हर वर्ष पक्षियों की नई-नई प्रजातियां आती हैं.