कुल्लू(अन्नी). चाइनीज सामान के बहिष्कार ने मिट्टी के दिये और बर्तन बनाने वालों को संजीवनी देने का काम किया है. इस बार कुल्लू शहर ने बिना चाइनीज सामान के दिवाली मनाने का मन बनाया है, जिस कारण कुल्लू में बर्तन बनाने वाले उत्साहित हैं.
अब मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की उम्मीद जगी है कि एक बार फिर से पुराने समय की तरह मिट्टी के दियों से ही कुल्लू शहर जगमगाएगा. पिछले कुछ सालों से यह लोग उपेक्षा के शिकार थे. बाजार में चाइनीज आइटमों को देख इनके कारोबार पर खतरा मंडरा रहा था.
पुराने दौर में मिट्टी के दीये, चिराग इत्यादि हर तरह के बनने वाले बर्तनों का कोई तोड़ नहीं होता था. कुल्लू के प्रत्येक घरों में मिट्टी के घडे़ हुआ करते थे, जिसमें ठंडा पानी मिलता था. आज बाजार की चकाचौंध के चलते लोगों ने घरों में वाटर कूलर, फ्रीज, आदि रखने शुरू कर दिए हैं. जिस कारण आज कुल्लू के कुछ जगहों को छोड़कर बाकि स्थानों पर शहरीकरण हावी होता नजर आ रहा है. कुल्लू के कुछ गांव में आज भी मिट्टी के बर्तन में पानी रखा जाता है जो कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है.
चाइनीज आइटमों ने मिट्टी के बर्तनों की मांग लगभग समाप्त ही कर दी थी, लेकिन जबसे चीन के बीच तनावपूर्ण हालात बने हैं तबसे देशवासियों को विकल्प के तौर पर देसी आइटमों की तरफ लौटने को मजबूर कर दिया है. ऐसे में कुम्हारों की उम्मीद परवान चढ़ रही है. उनकी चाक जिस अंदाज में घूम रही है, उससे कहा जा सकता है कि इस बार वह चाइनीज आइटमों के अभाव में विकल्प साबित हो सकेंगे.
राकेश राणा और रमेश कुमार सहित अन्य लोगों का कहना है कि इस बार हम लोगों ने मन बनाया है कि हम लोग चाइनीज सामान न खरीदकर हाथों से बने मिट्टी के दिये की ही खरीददारी कर रहे हैं. आज हम लोगों ने बाजार से मिट्टी के दिये खरीदे है और इस बार मिट्टी के दिये जलाकर ही हम लोग अपने आंगन को रोशन करेंगे.