कांगड़ा(परागपुर ). कहते है कि राजनीति में स्थायी मित्रता और प्रतिद्वंदिता कभी भी स्थाई नहीं हो सकते है. आखिर कुर्सी की भी अपनी अहमियत होती है.
25 वर्षों के बाद एक बार फिर दोहरे विधानसभा क्षेत्र से राजनीति के दो दिग्गज पूर्व विधायक योगराज और वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी विप्लव ठाकुर ने एक साथ चुनावी अभियान में उतरने का निर्णय किया है.
राजनीतिक सामंजस्य बनाने के लिए खुद विप्लव ठाकुर ने पूर्व विधायक योगराज के घर जाकर कांग्रेस हित का हवाला देकर उनकी राजनीतिक पहचान को मतों में बदलने का प्रयास किया है. उल्लेखनीय है कि प्रदेश की राजनीति में योगराज को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का समर्थक माना जाता है, जबकि विप्लव ठाकुर को वीरभद्र गुट में नहीं गिना जाता है.
योगराज का राजनीतिक इतिहास इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि मतदाताओं में आज भी योगराज का प्रभाव है. आज तक जितने भी चुनाव हुये हैं उनमें योगराज को जीत मिली है. कांग्रेस जीतना तो दूर, दूसरे नंबर पर भी नहीं आई हैं.
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे. इसी प्रभाव के चलते भाजपा में भी की कुछ लोग इस प्रयास में थे कि अब की बार योगराज को भाजपा में शामिल करवा कर उनकी घर वापसी करवाई जाये, क्योंकि योगराज का विधानसभा में पदार्पण 1977 में जनता पार्टी के माध्यम से हुआ था.
अगर ऐसा हो जाता तो परागपुर से भाजपा प्रत्याशी विक्रम सिंह और देहरा से रविंद्र रवि का पक्ष और मजबूत हो सकता था, लेकिन सूत्रों के अनुसार भाजपाई इस प्रपोजल को कार्यरूप ही नहीं दे सके और इसी बीच विप्लव ठाकुर ने मौका देखकर योगराज को अपने साथ जोड़कर अपना पक्ष मजबूत किया है.
विधानसभा चुनावों में विजय किसको मिलती है यह तो मतदाता ही जानते है लेकिन एक बार तो विप्लव ठाकुर ने 25 वर्षों के बाद फिर से योगराज को अपने साथ जोड़कर राजनीतिक पहल की है. योगराज और विप्लव का गठबंधन कांग्रेस को कितना मजबूत करता है अब यह देखना शेष रह गया है.