नई दिल्ली. पंडित सुखराम एक ऐसा नाम जिसके दामन में भ्रष्टाचार के दाग होने के बावजूद हिमाचल की राजनीति में एक अलग और अहम पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं. सुखराम को किंगमेकर भी कहा जाता है क्योंकि जब 1998 में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को बराबर बराबर सीटें मिली थी तो उस वक्त हिमाचल विकास कांग्रेस के नाम से पार्टी बनाकर 5 सीटें जीतने वाले सुखराम ने भाजपा को समर्थन देकर धूमल की सरकार बनवा दी थी. इस रिपोर्ट में जानिये सुखराम की सुख और दुख की कहानी.
भ्रष्टाचार का मामला
पंडित सुखराम 1996 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में दूर संचार मंत्री थे. मंत्री रहने के दौरान उनका नाम अपने पद का इस्तेमाल कर अपनी झोली भरने के लिये उछला था. उसी दौरान सीबीआई की एक टीम उनके दिल्ली के सफदरजंग स्थित आवास पर जा पहुंची. छापेमारी के दौरान सीबीआई को सुखराम के घर से लगभग ढाई करोड़ रुपये मिले. अधिकतर पैसा पूजा घर में सूटकेसों में भर कर रखा गया था. सीबीआई ने सुखराम के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया. अदालत ने सुखराम के उपर भ्रष्टाचार करने का आरोप सही पाया और उन्हें पांच साल की सजा भी सुनाई.
पंडित सुखराम का विवादों में से यूं भी पुराना नाता रहा है. राजनीतिक जोड़तोड़ और भ्रष्टाचार के आरोप अभी कुछ ठंडे पड़े ही थे कि सेक्स सीडी कांड ने भी उनकी काफी किरकिरी कराई. हिमाचल चुनाव से पहले उनके भाजपा में शामिल होने को भी विपक्षियों ने मुद्दा बनाया.
सुखराम के परिवार की राजनीतिक पारी
सुखराम वैसे तो अब कोई चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन उनका परिवार राजनीति में सक्रिय भुमिका निभा रहा है. सुखराम के बेटे अनिल शर्मा और उनके पोते आश्रय शर्मा राजनीति में अपनी नई कहानी लिख रहे हैं. अनिल शर्मा मंडी से विधायक रह चुके हैं. कांग्रेस की सरकार में उन्हें दो बार मंत्री भी बनाया गया है. अब सुखराम का पूरा परिवार भाजपा में शामिल हो गया है. जिस कारण अनिल को भाजपा ने मंडी से उतारा है. सुखराम का भाजपा में शामिल होना, वीरभद्र द्वारा उन्हें किनारा किये जाने का नतीजा बताया जा रहा है.
सुखराम और वीरभद्र की टक्कर
सुखराम और वीरभद्र में हमेशा टक्कर चलती रही है. जब सुखराम के घर छापा पड़ा था उस दौरान भी उन्होंने यह कहा था कि इसमें पार्टी के ही किसी नेता का हाथ है. वहीं सुखराम ने जब कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है तो वीरभद्र सिंह ने कहा कि ‘सुखराम का पूरा परिवा गद्दार है.’ वहीं वीरभद्र ने यह तक कह दिया कि सुखराम के परिवार के पैर जमीन पर टिक रहे हैं क्योंकि उनका रिश्ता सलमान के साथ जो हो गया है. बता दें कि सलमान की बहन की शादी सुखराम के परिवार में ही हुई है.
राजनीतिक जीवन
सुखराम परिवार की वजह से कांग्रेस का मंडी में वर्चस्व रहा है. सुखराम ने पहला विधानसभा का चुनाव 1962 में लड़ा और जीता. उसके बाद 1984 तक वो मंडी से कांग्रेस के विधायक रहे. वहीं 1984 में वो लोकसभा के लिये चुने गए. 1993 में उनके बेटे अनिल शर्मा ने अपने पिता की सीट को जीतने में सफलता हासिल की. सुखराम ने 5 सीटें जीतकर सारे समिकरण बदल दिए थे. 1996 में दूर संचार घोटाले में नाम उछलने के बाद सुखराम को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस नाम की पार्टी बना ली थी, जिससे 1998 में भाजपा को फायदा हुआ और धूमल ने सरकार बनाने सफलता पाई. यह और बात है कि फिर बाद में सुखराम ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था.