नई दिल्ली. आपने कहानियां तो बहुत सुनी होंगी मगर क्या आपने रसगुल्ले की कहानी सुनी है. आज हम उसी मीठे से, रस भरे, गोलमटोल गुल्ले की बात करेंगे जिसे मीष्टी, रसगुल्ला, रोसोगोल्ला, रोसोगुल्ला, रसगुल्ले, कच्चा रसगुल्ला, सफेद रसगुल्ला या छेना मिठाई जैसे नामों से पहचाना जाता है. कहानी को जान लेना इस लिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि पश्चिम बंगाल और ओडिसा के बीच चल रही रसगुल्ले की लड़ाई को अब बंगाल ने जीत लिया है.
क्या है रसगुल्ले के बनने की कहानी
कहा जाता है कि 1868 में नोबीन चंद्र दास ने इस मिठाई के राजा की खोज की थी. बंगाल में किसी हलवाई के दुकान में काम करते हुए कई सालों से तनख्वा नहीं मिलने के बाद नौकरी छोड़ कालीघाट में एक छोटी सी जगह में मिठाई की दुकान खोली. युवक को कुछ नया करने का जुनून था. लेकिन उसकी मिठाई बिक नहीं रही थी, उसके बाद उसने बचे हुए छेना की मिठाई बनाकर रस में डुबोना शुरू कर दिया. जिसके बाद उसका नाम पड़ गया ‘रस में डूबा गोला’ से रसगोला, रसगुल्ला आदि. नोबीन के दुकान में एक दिन बहुत धनी सेठ आया जिसने उसको रसगुल्ले का पहला बड़ा ऑर्डर दिया और तब से ही रसगुल्ला फेमस हो चला.
ऐसा एक इंसान चुनो जिसने रसगुल्ला नहीं खाया हो
रसगुल्ला लगभग देश के हर कोने में छोटे से लेकर बड़े से होटल में आसानी से मिल जाता है. वैसे अब तो बनिये की दुकान में भी मिलने लगा है. रेडिमेड पैक में हल्दीराम तो बहुत पहले से ही सील बंद डिब्बे में बेच रहा है वहीं अब नजाने कितनी कंपनियां धड़ाधड़ रसगुल्ले बेचे चले जा रही है. लेकिन जो मजा आय-हाय गांव के छोटे से होटल के रसगुल्ले में मिलते हैं वो इन डिब्बा पैक में कहां. मैं भारत छोड़ किसी दूसरे देश में नहीं गया लेकिन दावे के साथ कह सकता हूं, जहां भी सही संख्या में भारतीय रहते होंगे वहां एक न एक दुकान जरूर होगी जो रसगुल्ले बनाकर बेचती होगी.
हमारे बचपन का रसगुल्ला प्रेम
आम भारतीयों की तरह मेरा जीवन भी रसगुल्ले के इर्दगिर्द ही घूमता रहा है. टेंशन मत लिजिए ज्यादा बोर नहीं करुंगा. मेरे जीवन के शुरुआती 7 साल बंगाल में ही बीते. उस समय दो चीजों का बड़ा चस्का लगा. एक तो आलू चॉप का दूसरा मीष्टी(रसगुल्ला) का.
मीष्टी का मतलब क्या ?
मुझे नहीं पता कि रसगुल्ला को बंगाल में मीष्टी कहते हैं या नहीं पर मैं जब आसनसोल के बाजार में लगभग हर शाम अपने पापा के साथ मार्केट जाता था तो होटल वाले अंकल दूर से ही मुझे बुलाकर कहते थे ‘ए छेले की… मिष्टी खाबो’ और मुझे तो खाना ही था तो मैं टूट पड़ता था. मैं छोटा सा मासूम सा बच्चा 2 बड़े रसगुल्ले खाकर डकार भी नहीं लेता था. तो मेरे लिए वो स्वादिष्ट सफेद सी चीज जो रस में आधी डूबी रहती थी, वह मीष्टी कहलाती थी.
मेरा वोट तो बंगाल को ही था पर…
जब बंगाल और ओडिसा में इस बात की फाइट हुई कि रसगुल्ला हमारा है की तुम्हारा. मेरा दिल कहता था कि बंगाल का ही होगा क्योंकि मैं कभी उड़ीसा गया नहीं. बचपन की दुनिया भी तो वहीं की है तो मेरा वोट तो बंगाल को ही जाता था. लेकिन मन में संशय जरूर पैदा हो गया था. फिर सोचा चलो टेस्ट हो रहे हैं देखते हैं कौन जीतेगा.
तो ओडिशा वाले किस रसगुल्ले की बात करते हैं
बात 2015 की है जब ओडिशा के विज्ञान एवं तकनीक मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने मीडिया के सामने दावा किया कि रसगुल्ला ओडिशा राज्य में तकरीबन 600 साल से मौजूद है. इस बयान का विरोध करते हुए बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्लाह ने कह दिया कि ओडिशा को रसगुल्ला को इजाद करने का क्रेडिट नहीं लेने देंगे. इस लड़ाई के कारण ही रसगुल्ला मिठास की जगह कभी-कभी दोनों राज्यों के बीच कड़वाहट का कारण बन रही थी. ओडिशा ने भगवान जगन्नाथ के प्रसाद में ‘खीर मोहन’ को अपने दावे का आधार बताया. खैर उनकी यह दलील नहीं चली और अंत में यह माना गया की ‘खीर मोहन’ और रसगुल्ला एक दूसरे से बिलकुल जुदा हैं. माना गया कि बंगाली के ही दिमाग की उपज से रसगुल्ले ने अपना रूप धारण किया था.
वो शादी ही क्या जहां रसगुल्ले न हो
एक समय था जब मेहमान आते थे तो मटके में रसगुल्ले भर कर लाते थे. घरों में बच्चे दिन गिनते थे कि फलां फूफा आएंगे तो रसगुल्ला लाएंगे. आपने भी शादी के घरों में चुपके से दनादन रसगुल्ले जरूर दबाए होंगे क्यों भूल गए क्या. शादी के घर में आपने देखा होगा भले ही कोई गहने जेवर चुरा ले जाए लेकिन रसगुल्ला जिस कमरे में रखा हो उसमें एक मजबूत सा ताला जरूर लटकाया जाता था. और उस कमरे की जिम्मेदारी भी किसी जिम्मेदार इंसान को ही दी जाती थी. अब भी जिस शादी में गुलाब जामुन की बगल में सफेद रसगुल्ला रखा मिल जाता है तो समझते हैं इंतजाम अच्छा किया हुआ है.
जब मेरी बीवी ने बनाया रसगुल्ला
वैसे तो मार्केट में कई तरह की मिठाइयां उपलब्ध है जैसे बर्फी, इमरती, नमकीन मिठाईयां, कलाकंद, डायबीटीज वालों के लिए सुगर फ्री मिठाई. अरे हां गुलाब जामुन की बात भी कर लेते हैं. याद आया कि बहुत से लोग गुलाब जामुन को पक्का रसगुल्ला भी कहते हैं. कुछ तो काला रसगुल्ला भी कहते हैं. अगर मुझे बनाना आता तो मैं अभी आपको दोनो का अंतर भी समझा पाता. हां एक दिन मेरी वाइफ ने यूट्यूब से सीख कर गजब का रसगुल्ला बनाया. जिसको खाने के बाद ही मैने अपनी पत्नी को एक अच्छा कुक माना था.

जीजाजी प्लीज खाइये न, बस एक…
एक तो इन सालियों का कुछ करो यार. हद हो गई क्या उन्हें यह नहीं पता कि रसगुल्ला में रस होता है. जीजाजी प्लीज खाइये न नहीं खाइये न बस एक ओर… अरे जितना खिलाती नहीं उतना कोट के ऊपर गिरा चुकीं होती हैं मोहतरमा. यह थी रसगुल्ले से जुड़ी कुछ बातें. इतना तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि आपके पास भी रसगुल्ले को लेकर कई कहानियां होंगी हैं न. हां अगर आप को रसगुल्ला पसंद नहीं तो नहीं होगा. मुझे भी पिज्जा नहीं पसंद अब नहीं पसंद तो नहीं पसंद. चलिए यह था मेरा पहला ब्लॉग. लिखना आता नहीं पर कोशिश शुरु हो चुकी है. अगर मैने आपको ज्यादा पकाया हो तो माफ कीजियेगा.
जियोग्राफिकल इंडिकेशन ने माना बंगाली रसगुल्ला बंगाल की देन
जियोग्राफिकल इंडिकेशन के चेन्नई कार्यालय ने इस बात को मान लिया है कि बंगाल ने ही रसगुल्ले की खोज की है. खैर खोज किसी ने भी की हो कहीं भी हुई हो. अपने को क्या दबाते रहो रसगुल्ले, चलिए बहुत हुआ, अब कुछ मीठा हो जाए. छोटू… दो प्लेट रसगुल्ले ले आ भई.