नई दिल्ली. माघ शुक्ल की पंचमी तिथि को विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती की उपासना कर बसंत पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है. सुबह से ही मंदिर में लोगों की भीड़ देखी गई. भारी संख्या में लोग मां सरस्वती की पूजा करने घरों से निकले. वैसे तो पूरे भारत में इस पर्व को मनाया जा रहा है, लेकिन बिहार, झारखंड और उड़ीसा में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसके अलावा बसंत पंचमी की धूम न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में अलग-अलग नामों से देखी जा सकती है.
चूंकि मां सरस्वती विद्या और बुद्धि की देवी हैं, इसलिए छात्रों में इसको लेकर ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है. आज के दिन चंदा इकठ्ठा करके मूर्ति रखी जाती है और पूजा अर्चना होती है. वहीं छात्र बकायदा कॉपी-किताबों की पूजा भी कर रहे हैं. आज के दिन किसी भी कार्य को करना शुभ माना जाता है. इसलिए इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, नवीन व्यापार प्रारंभ और मांगलिक कार्य किए जाते है. इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते और साथ ही पीले रंग के पकवान बनाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पीले रंग को खुशहाली का प्रतीक मानते हैं. महिलाएं इस दिन साड़ी पहनकर पूजा करती हैं.
सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित पूरे एशिया में यह त्योहार मनाया जा रहा है. हालांकि वहां मूर्ति पूजा नहीं की जाती है.
सूफी भी मनाते है बसंत पंचमी
बसंत पंचमी का नाम आते ही जहन में आता है कि यह त्योहार सिर्फ हिंदू धर्म ही मनाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. सूफी मुस्लिम भी बसंत पंचमी बड़े ही धूमधाम से मना रहे हैं. कई दरगाह पर बसंत पंचमी के दिन जलसा होता है जिसमें कव्वालियां होती है. यही नहीं बसंत पंचमी में मेला भी लगता है.
दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया और उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले में सैयद सलार मसूद गाजी, मकनपुर में हजरत मदार साहब, देवां शरीफ में हजरत वारिस पाक और कटरा, श्रावस्ती में सैयद मीरा शाह की दरगाह सहित कई और जगहों पर बसंत पंचमी धूम-धाम से मनाई जा रही है.
हजरत निजामुद्दीन औलिया में पीले फूलों की टोकरी अकीदत में पेश की जाती है. बेहतरीन कव्वाली होती है. लोगों की मान्यता के मुताबिक हजरत निजामुद्दीन औलिया के चहीते भांजे की असमय मौत हो जाने से वह बहुत उदास रहते थे. बसंत पंचमी के दिन अमीर खुसरो उनके सामने पीले रंग की पगड़ी और गेंदे के फूल का गुलदस्ता लेकर हाजिर हुए और खूब झूमे. जिसके बाद हजरत निजामुद्दीन औलिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई. तभी से यहां बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और वहां टोकरी में गेंदे के फूल पेश किए जाते हैं.
इसी तरह सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर फल और फूलों की टोकरी चढ़ाई जाती है. इसके अलावा उनके कपड़े और उनका कुरान शरीफ भी लोगों को दिखाया जाता है. इस दरगाह पर हिंदू की संख्या मुस्लिम से कतई कम नहीं होती. यानि कुल मिलाकर बसंत पंचमी हिंदू-मुस्लिम एकता की बेहतर मिसाल है. जिस तरह बसंत खुशी का प्रतीक है. उसी प्रकार इससे आपसी सौहार्द भी कायम होता है.