रांची. मासिक धर्म या माहवारी एक ऐसा विषय है जिस पर न महिलाएं खुलकर बात कर पाती हैं और न ही परंपरागत भारतीय समाज में आमतौर पर ऐसे विषयों पर बात करने का खुलापन हैं. लेकिन इस सब्जेक्ट को लेकर बनाई गई अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन ‘पर्सनल वीमेन हाईजीन’ पर एक नई बहस छेड़ दी है. हालांकि पहली बार देश में फिल्म के माध्यम से यह विषय पब्लिक डोमेन में आया है लेकिन कई ऐसे लोग हैं जो लाइम लाइट से हटकर इसपर काफी पहले से इसपर काम कर रहे हैं. ऐसे ही हैं झारखंड के पैडमैन के नाम से जाने जाने वाले मंगेश झा. मूल रूप से बिहार के मिथिलांचल से आने वाले मंगेश लगभग तीन साल से इस विषय पर झारखंड के अलग-अलग इलाके के ग्रामीण महिलाओं के बीच काम कर रहे हैं.
भुवनेश्वर से 2009 में होटल मैनेजमेंट की पढाई करने वाले मंगेश ने कुछ वर्ष इस सेक्टर में पांच सितारा होटलों में काम किया. इनके माता पिता रांची में रहते थे जिस वजह से इनका झारखंड कनेक्शन इन्हें यहां खींच लाया. यहा इन्होंने गांवों में महिलाओं की जो स्थिति देखि उसके बाद इस विषय पर काम करने का निर्णय लिया. हालाकि पुरुष होने के कारण इस मुद्दे पर काम करना मुश्किल था लेकिन इसमें उनकी मां ने इनका हौसला बढाया.
आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं को सेनेटरी पैड के बारे में पता ही नहीं था
मंगेश ने पंचायत टाइम्स को बताया कि आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं को तो सेनेटरी पैड के बारे में भी पता ही नहीं था. उन्होंने इसका नाम भी नहीं सुना था. लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं यहां आज भी माहवारी के दौरान पारंपरिक संसाधन का प्रयोग करती थी जो कि स्वास्थ्य के लिए घातक है ऐसे में मंगेश ने इसके लिए मुहिम छेड़ी.
मंगेश कहते हैं कि जब इस विषय पर काम करने की ठानी तो पहले मां ने समझाया फिर खुद सेनेटरी पैड दिखाया और पीठ थपथपायी. वही से मंगेश की पर्सनल वीमेन हाईजीन’ पर काम करने की यात्रा शुरू हुई. फिर समस्या आई फण्ड की तो ऐसे में उनकी माता ने सूती कपडे से पैड बनाकर दिया जिसे शुरुआती दौर में मंगेश ने बांटना शुरू किया. वो बताते हैं की सरकार की हेल्थ स्कीम की हकीकत इन्ही गांवों में देखने को मिलती है. जहा महिलायें माहवारी के दौरान सेनेटरी पैड की पेड़ों के पत्ते या फॉर राख का इस्तेमाल करती है. यही नहीं कहीं-कहीं सूती कपड़े का भी उपयोग किया जाता है लेकिन सामाजिक बंदिशों की वजह से उसे रीसाइकिल किए बिना महिलाएं दुबारा उपयोग करती हैं.
सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने में मिजोरम की महिलाएं आगे
पूरे देश की अगर बात करें तो सरकार के आंकड़ों के हिसाब से सबसे ज्यादा सेनेटरी पैड इस्तेमाल करने वाली महिलाएं मिजोरम में हैं जहाँ 93 परसेंट महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. वहींं तमिल नाडू में 91 परसेंट, सिक्किम में 85 परसेंट, महाराष्ट्र में 50 परसेंट, कर्नाटका में 53 जबकि आंध्र प्रदेश में 43 परसेंट और उत्तरखंड में 55 परसेंट महिलाएं सेनेटरी पैड इस्तेमाल करती हैं. हैरत की बात यह है की झारखण्ड में इस तरह का कोई ऑथेंटिक डाटा नहीं है. जबकि देश में 15 से 24 वर्ष की 62 प्रतिशत लड़कियां हैं जो पीरियड्स के दौरान असुरक्षित उपाय करती हैं.
एसएचजी या महिला मंडल का इस्तेमाल कर सरकार करे महिला सशक्तिकरण
मंगेश कहते हैं की यह महिलाओं की ऐसी जरूरत है जिसे नकारा नहीं जा सकता है. साथ ही असुरक्षित उपाय से बीमारियाँ हो सकती हैं. ऐसे में सरकार महिला मंडल या एसएचजी के माध्यम से पैड बनाने की यूनिट गाँव में स्थापित कर सकती है. इससे दोहरा लाभ होगा. एक तरफ महिलाओं को स्किल के साथ काम मिलेगा दूसरा उनके जरूरत की चीज मिलेगी. इसके अलावे इसे सरकार को टैक्स फ्री रखना चाहिए.
माहवारी से जुड़े कुछ खास तथ्य :
1-विज्ञान की दृष्टि से देखें तो मासिक धर्म गर्भाशय की आंतरिक सतह एंडोमेट्रियम के टूटने से होने वाला रक्त स्राव है. गर्भधारण कर सकने के लिए इस प्रक्रिया का सामान्य होना आवश्यक है और शरीर में हारमोन नियंत्रण में भी इस प्रक्रिया की अहम भूमिका है. मनुष्य के पूर्वज कहे जाने वाले चिंपाजी की मादा में भी मेन्स्ट्रुएशन सायकल देखी जाती है.
2-इस प्रक्रिया के दौरान तीन से से आठ दिनों के दौरान करीब 35 मिलीलीटर खून बहता है. लेकिन बहुत ज्यादा रक्त स्राव की स्थिति में स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.
3-मोटापे और माहवारी का सीधा संबंध है. अगर कोई महिला मोटापे से ग्रस्त है तो माहवारी अनियमित हो जाती है और वजन कम नहीं होता. इसके लिए एक्सरसाइज बहुत अच्छा उपाय है.
4- वैसे तो सभी योगासन इस समस्या को ठीक कर सकते हैं लेकिन सर्वांगासन, शलभासन, हलासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानआसन, वीरासन, मार्जरासन. कुछ आसान आसन हैं. सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास भी महत्वपूर्ण है. मासिक धर्म में अनियमितता का एक बड़ा कारण तनाव भी है. इसलिए इस दौरान और सामान्य जनजीवन में तनाव खत्म करने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए.