हाल ही में हुए किसान आन्दोलन ने सरकार की पोल खोल दी है. देश में किसान हमेशा से हाशिये पर रहा है. लेकिन पिछले दो दशकों में, किसान कर्ज में डूबते ही जा रहे हैं. उनकी दयनीय हालत पर मोदी सरकार ने भी अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह अब तक केवल बातों की जलेबी ही छानी है। हाल ही में पीएम ने संसद के मॉनसून सत्र को किसानों को समर्पित किया है। ज़ाहिर है, सरकार बातों की फुलझड़ियां चलाते हुए कोरा संदेश देती रहती है कि वह किसानों के साथ है और उनके लिए सब कुछ कर रही है।
जबकि सच यह है कि किसान फिर भी मर रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं. किसानों की हालत पर सरकार की संवेदनशीलता को उस वाकये से जांचा जाना चाहिये जब तमिलनाडु के किसान, दिल्ली में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते रहे लेकिन सरकार के किसी मंत्री या भाजपा के किसी नेता ने उनकी सुध ना ली. इसके बाद कई राज्यों में किसान आन्दोलन शुरू हो गये थे. 41 दिन तक आन्दोलन करने के बाद वे किसान, मजबूरन अपने राज्य चले गये थे. इस बीच अन्य राज्यों से किसान आंदोलन की खबरें आती रहीं। एक बार फिर, इस मसले पर सरकार की तरफ से कोई पहल ना देख कर ये किसान फिर से दिल्ली के जंतर–मंतर अपनी कुछ नए मांगो के साथ जुट गये है. उनका कहना है कि इस बार का आन्दोलन उससे भी बड़ा होगा.
राजनितिक मोहरा बनते किसान
दूसरी तरफ किसानों के बढ़ते कर्जे को लेकर आज राजस्थान के बांसवाडा में कांग्रेस के द्वारा किसान आक्रोश रैली का आयोजन किया गया. इस रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा कि भाजपा और आरएसएस किसान विरोधी है. वहीं किसानों के कर्जमाफी पर बोलते हुए राहुल ने कहा कि पंजाब में जब हमारी सरकार सत्ता में आई तो 24 घंटे के अंदर हमने किसानों का कर्ज माफ कर दिया. वहीं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के द्वारा दबाव बनाये जाने का बाद योगी सरकार ने किसानों का कर्ज माफ़ किया और अब हम यह दबाव राजस्थान की सरकार पर भी बनायेंगे.
केंद्र सरकार का संसद में जवाब
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री एस एस आहलूवालिया ने किसानों के मामले पर बोलते हुए कहा कि केंद्र सरकार किसानों को दिए जाने वाले समर्थन मूल्य को सहकारिता एजेसियों के जरिये तय कर रही है. वहीं केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को समय–समय पर आगाह भी किया है कि वे किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रबंध करें. हालाँकि सरकार ने किसानों के लिए विकल्प खुले रखे हैं कि वह किसान न्यूनतम मूल्य के तहत अपनी फसल सरकार को बेचे या खुले बाज़ार में.
किसानों को उनकी फसल के उचित दाम मिल सके, इसलिए सरकार ने विभिन्न राज्यों में 2016-17 के दौरान 38.65 मिलियन टन चावल, 22.93 मिलियन टन गेहूं और 1.3 मिलियन टन दलहन की वसूली की है. सरकार ने किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार के तहत पूरे भारत में इलेक्ट्रॉनिक आधार पर करोबार करने की योजना शुरू की है. इस योजना का उद्देश्य साझा ई-बाजार के जरिये 585 नियमित बाजारों को जोड़ना है. हर राज्य को तीन प्रमुख सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनमे इलेक्ट्रॉनिक कारोबार को अनुमति, पूरे राज्य में एकल लाइसेंस की मान्यता और एकल बाजार शुल्क शामिल हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार के अन्तर्गत 13 राज्यों के 455 बाजार आ गये हैं. वहीं सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सके, इसके लिए कई जागरूकता अभियान भी चलाये हैं.
सोशल मीडिया पर भी लोग गुस्से में
सोशल मीडिया में भी किसानों की स्थिति को लेकर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. ट्विटर पर हैशटैग ‘आक्रोश किसान’ के माध्यम से लोगों का गुस्सा सरकार पर फूट पड़ा है. जिसमें लोगों ने केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है. जिसमें कांग्रेस के समर्थकों ने केंद्र सरकार की नाकामियों की आलोचना कर रहे हैं.