शिमला. हिमाचल प्रदेश में कृषि गतिविधियों में विविधता लाने के लिए 321 करोड़ रुपये की एक महत्वकांक्षी परियोजना लागू की जा रही है. जिसके अंतर्गत कृषकों को नकदी फसलें उगाने तथा जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. प्रदेश के पांच जिलों में चल रही इस परियोजना के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. बड़ी संख्या में कृषक जैविक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं. जिसके कारण बे-मौसमी सब्जियां उगाने में अग्रणी यह प्रदेश अब जैविक खेती अपनाने में भी सरताज बन गया है.
प्रदेश में अब तक लगभग 40 हजार कृषकों को पंजीकृत करके 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के तहत लाया जा चुका है. इस वर्ष 2 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को इस खेती के अंतर्गत लाने तथा 200 जैव-गांव विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है. राज्य सरकार ने जैविक खेती में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषकों को पुरस्कार प्रदान करने की भी घोषणा की है. जिसमें सर्वोत्तम जैविक कृषक को 3 लाख रुपये का प्रथम, 2 लाख रुपये का द्वितीय पुरस्कार तथा एक लाख रुपये का तृतीय पुरस्कार प्रदान किया जाएगा.
इन जिलों में लागू होगी ये योजना
यह योजना प्रदेश के कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर तथा मण्डी में, जापान इंटरनेशनल को-आप्रेशन एजेंसी (जायका) के सहयोग से लागू की जा रही है. इस योजना में अब तक 212 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इस वर्ष 80 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रावधान किया गया है. इस परियोजना की गतिविधियों का संचालन कृषि विकास सोसायटी द्वारा किया जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई सुविधाएं विकसित करना, कृषकों को जैविक खेती अपनाने तथा नकदी फसलें उगाने के प्रति प्रेरित करना है.
कृषि विभाग तथा कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप आज प्रदेश में कृषि करने के तौर-तरीकों में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है. कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर में अलग से जैविक खेती विभाग स्थापित किया गया है, ताकि इस अभियान को गति व दिशा प्रदान की जा सके. गौरतलब है कि प्रदेश में मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत कम रसायनों का प्रयोग होने के कारण यहां जैविक खेती करने की अपार संभावनाएं हैं. एक कृषि सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल में कीटनाशक रसायनों की खपत मात्र 158 ग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि देश में औसतन खपत 381 ग्राम प्रति हेक्टेयर है.
हालांकि, प्रदेश की 80 प्रतिशत खेती वर्षा पर निर्भर है, फिर भी प्रदेश में रिकॉर्ड उत्पादन हाने के कारण हिमाचल को खाद्यान्न उत्पादन में सराहनीय बढ़ोतरी के लिए लगातार वर्ष 2014-15 तथा वर्ष 2015-16 में कृषि कर्मण्य पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जो प्रदेश के लिए गौरव की बात है.