तापी. आशीष भाई गामित साल भर से अपने गांव नहीं लौट पाये हैं. ओकाई बांध विस्थापन के बाद 1960 में उनके पिता को जामने गांव में बसाया गया था. जामने गांव सोनगढ़ तालुका से 8 किलोमीटर दूर है. तापी जिले का गांव है. ‘ऑस्कर बैंक’ घोटाला सामने आने के बाद से अब वे निर्वासित जीवन बिता रहे हैं. बीते दो सालों से आशीष भाई गामित तापी के जिला मुख्यालय व्यारा में एक किराये के मकान में रहते हैं.
ऑस्कर बैंक के डेवलपमेंट ऑफिसर रहे आशीष अब एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते हैं. वे साल 2013 में बतौर एजेंट ऑस्कर बैंक से जुड़े थे. आशीष ने 23 फीसदी कमीशन के साथ एजेंट के तौर पर यहां नौकरी शुरू की थी. जब उन्हें डेवलपमेंट ऑफिसर बनाया गया, उनके महीने की कुल आमदनी 1,800 रुपया थी.
आशीष से 2,200 लोग मांग रहे हैं 35 लाख
2015 में जब ऑस्कर बैंक बंद होने की बात सामने आयी; आशीष 2200 लोगों के 35 लाख रुपये बैंक में जमा करवा चुके थे. बैंक में पैसे जमा करवाने वालों में ज्यादातर उनके परिचित और जानने वाले थे. आशीष बताते हैं, “सालभर पहले आखिरी बार गांव गये थे, तब लोगों को पैसा मिलने की बात कहकर लौट पाया; उसके बाद गांव लौटने की हिम्मत नहीं हुई.”
10वीं तक पढ़े आशीष भाई गामित के पास विस्थापन के बाद मिले बीघेभर के आसपास की जमीन है. जिसपर गुजारा चलाना मुश्किल रहा है. वे बताते हैं, ” बेहतर भविष्य के लिये कंपनी ज्वाइन की; खूब मेहनत भी की, अब उसी नौकरी की वजह से जिन्दगी तबाह हो चुकी है.”
अपनों के कर्जदार हुए युवा
‘ऑस्कर बैंक’ के डूबने के बाद आशीष की तरह हजारों युवा अब अपने ही लोगों के ‘कर्जदार’ हो गये हैं. पैसा जमा कराने वाले लोगों का गुस्सा भी इन्ही एजेंट और अधिकारियों पर उतर रहा है. जिन लोगों ने पैसा जमा करवाया है वे निम्न आय वर्ग के हैं और बैंकिंग व्यवस्था से दूर हैं.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चिट फंड कंपनी ऑस्कर ग्रुप ऑफ कंपनीज ने अकेले गुजरात के 13 हजार लोगों से 150 करोड़ रुपये जमा करवाये. अगर उड़ीसा और महाराष्ट्र में कंपनी द्वारा उगाहे गये रकम को जोड़ दें तो यह 230 करोड़ से अधिक हो जाता है. 2015 में जब जमाकर्ताओं ने अपने पैसे मांगने शुरू किये तो कंपनी ने अपने हाथ खड़े कर दिये.
ऑस्कर ग्रुप ऑफ कंपनी के मालिक प्रभाष राउत फिल्म प्रोड्यूसर रहे हैं. यह ग्रुप एक उड़ीया दैनिक का भी प्रकाशन करती है. कंपनी ने जमाकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिये फिल्म स्टार से भी पैसे जमा करवाने की अपील करवाई गई. कंपनी की उड़ीसा में 50, गुजरात में 45 और महाराष्ट्र में पांच शाखाएं थीं. कंपनी के बंद होने के बाद रातोंरात इन ब्रांच को बंद कर दिया गया.
जमाकर्ताओं का गुस्सा एजेंट पर
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अजीत भाई (50) बिहार से हैं. व्यारा में 20 साल से अाइसक्रीम की दुकान लगाते हैं. दो साल में वे 80 हजार रुपये ऑस्कर बैंक में जमा करवा चुके थे. अजीत भाई कहते हैं, “एजेंट से हमारी पुरानी जान-पहचान थी, हम उसी के भरोसे अपना पैसा जमा किया था. हम तो बस एजेंट को जानते हैं.”
रोमेल सुतेरिया आदिवासी एक्टिविस्ट हैं. उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों के 22,000 लोगों की सूची तैयार की है, जिन्होने अपना पैसा चिटफंड में गंवाया है. अब वे उच्च न्यायालय में जमाकर्ता के पैसे की वापसी के लिये पीआईएल दायर किया है. ऑस्कर से पहले भी कई कंपनियां गुजरात में पोंजी स्कीम के नाम पर करोड़ों का घोटाला कर चुकी हैं. रोमेल इसे जागरूकता की कमी और बैंकिग व्यवस्था के विफल होना मानते हैं.
रोमेल जनजातिय क्षेत्रों में 100 से अधिक सभा करके चिटफंड में पैसा गंवाने वाले लोगों को एक मंच पर ला रहे हैं. बताते हैं कि इस दौरान एजेंट पर हमले भी हुये. लेकिन हम चाहते हैं कि पैसा गंवाने वाले लोग समझें कि गुनाहगार मालिक हैं, एजेंट और अधिकारी भी उन्ही की तरह धोखेबाजी के शिकार हुये हैं.
एक अन्य एजेंट शंकर भाई बताते हैं कि फिलहाल केस होने के बाद लोगों का गुस्सा ठंडा है. लेकिन वे अपने ही लोगों से आंखे नहीं मिला पा रहे हैं.