नई दिल्ली. भाप इंजन प्रेमियों के लिए बड़ा आकर्षण और विश्व का सबसे पुराना कार्य कर रहा रेल इंजन “ फेयरी क्वीन ” पिछले एक साल से भारतीय रेल विरासत को नई पहचान दे रहा है. पर्यटकों को यह महीने में दो बार दिल्ली कैंट स्टेशन से रेवाड़ी तक की यात्रा करा रहा है. पिछले साल 11 फरवरी, 2017 को इसकी शुरुआत की गई थी. आने वाले दिनों में देश के अलग-अलग स्टेशनों पर भाप वाले इंजन बोगियों की खींचते हुए नजर आएंगे. इसका मकसद रेलवे की विरासत का संरक्षण करने के साथ ही पर्यटकों को लुभाना है.
रेलवे की एक दशक से पुरानी समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिए रेलवे बोर्ड ने हाल ही में रेलवे जोनों और उत्पादन इकाइयों के विरासत अधिकारियों के साथ एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया था. जिसकी अध्यक्षता रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी ने की थी. फेयरी क्वीन स्टीम लोकोमोटिव को फिर सेचालू करने और रेवाड़ी भाप केंद्र की स्थापना की तर्ज पर रेलवे बोर्ड रेलवे ऐसी विरासत संबंधी चीजों की पहचान के लिए विशेष अभियान शुरू करने वाला है जो अभी अलग-अलग जगहों पर उपेक्षित पड़ी हैं। रेलवे जल्द ही विरसत के संरक्षण के क्रम में भाप से चलने वाली रेलगाड़ियों का भाप वाली लाइनों पर नियमित अंतराल पर चलाने की योजना बना रहा है.
162 साल पुरानाा है “ फेयरी क्वीन ”
फेयरी क्वीन स्टीम लोकोमोटिव को 1855 में इंगलैंड के लिड्स में किटसन, थामप्सन और हेबिटसन ने बनाया था और यह उसी वर्ष कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचा था. कोलकाता पहुंचने पर लोकोमोटिव के स्वामी ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने इसे फ्लीट नंबर 22 कहा गया और 1895 तक इसे कोई नाम नहीं मिला. शुरू में पांच फीट 6 इंच (1,676 एमएम) गेज लोकोमोटिव का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में हावड़ा और रानीगंज के बीच हल्की ट्रेनों को खींचने में किया गया. इसके बाद 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान फौजी ट्रेन को खींचने के काम में इसको लगाया गया. बाद में इसे लाइन निर्माण ड्यूटी में बिहार में लगा दिया गया जहां यह 1909 तक रहा.
1988 में गिनिज बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ नाम
नई दिल्ली के चाणक्य पुरी में नए बने राष्ट्रीय रेल संग्रहालय में इसे पुनर्स्थापित किया गया और इसे विशेष स्थान दिया गया। यह संग्रहालय 40 वर्ष पहले 1 फरवरी, 1977 को चालू हुआ था. लोकोमोटिव को 88 वर्षों में पहली बार मुख्य लाइन यात्रा के लिए 1997 में पूरी तरह काम करने लायक बनाया गया और यह 18 जुलाई को वाणिज्यिक सेवा में आया. इसे विश्व का सबसे पुराना और नियमित रूप से काम करने वाला भाप इंजन के रूप में 1988 में गिनिज बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा प्रमाणित किया गया. अगले वर्ष इसको विशिष्ट्र पर्यटन परियोजना के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार दिया.