शिमला. हिमाचल प्रदेश में 300 से अधिक जैव विविधता प्रबन्धन समितियों का गठन किया गया है. ये प्रबंध समितियां पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधियों के बीच जागरूकता लाने का काम करेगी. इन समितियों का गठन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण परियोजना के तहत किया गया है. परियोजना का उदेश्य जैव विविधता के संरक्षण करना है. हिमाचल प्रदेश देश के उन 10 राज्यों में एक है जहां यह परियोजना लागू की गई है.
वैश्विक पर्यावरण पोषित यह परियोजना के तहत विभिन्न लाभार्थी समुदायों में जागरूकता लाने और उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने पर बल दिया जा रहा है.
प्रदेश में विभिन्न ग्राम पंचायतों में जैव विविधता संरक्षण के प्रति विशेषकर राज्य के पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधियों के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से राज्य में लगभग 366 जैव विविधता प्रबन्धन समितियों का गठन किया गया है. प्रथम चरण में चम्बा, कुल्लू, शिमला, सिरमौर, किन्नौर तथा लाहौल-स्पीति जैसे जैव विविधता वाले समृद्ध जिलों की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
राज्य सरकार ने जैविक विविधता अधिनियम-2002 के प्रावधानों को प्रभावशाली ढंग से कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यावरण)की अध्यक्षता में राज्य जैव विविधता बोर्ड का भी गठन किया है. इस अधिनियम में राज्य में जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों का सतत प्रयोग, जैविक संसाधन, ज्ञान तथा इससे जुड़े मामलों के प्रयोग से मिलने वाले फायदों को सही एवं समान ढंग से बांटने के लिए प्रावधान किया गया है.
प्रशिक्षण शिविरों एवं जागरूकता कार्यशालाओं के माध्यम से हितधारकों की क्षमता बढ़ोतरी की ओर विशेष ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है ताकि इस अभियान को निचले स्तर तक ले जाया जा सके.
अभी तक पंचायत स्तर पर 150 जागरूकता तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं जिसमें स्कूली बच्चों को भी जैव विविधता के प्रति जागरूक बनाया जा रहा है। परियोजना के अंतर्गत ऐसी गतिविधियों पर लगभग 2.32 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
जैव विविधता प्रबन्धन समितियों के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न भागों में उपलब्ध जैव विविधता के खजाने का अभिलेखीकरण किया जा रहा है. जैव विविधता रजिस्टर तैयार करके जैव-सम्बन्धी पारम्परिक ज्ञान सहित सम्बन्धित क्षेत्रों में उपलब्ध जैविक विविधता के लिखित प्रमाण तैयार किए जा रहे हैं तथा प्रदेश में अभी तक इस प्रकार के कम से कम 6 ‘लोक जैव विविधता रजिस्टर्स’ तैयार किए गए है जबकि 117 अन्य रजिस्टरों को तैयार करने का कार्य प्रगति पर है. इस कार्य में प्रदेश के अग्रणी अनुसंधान संस्थानों सहित प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों का भी सहयोग लिया जा रहा है.
हिमाचल प्रदेश को प्रकृति ने समृद्ध जैव विविधता से नवाजा है तथा वर्तमान में प्रदेश की वनस्पति धरोहर में लगभग 180 वनस्पति परिवार हैं, जिनमें 1038 प्रजाति समूह और लगभग 3400 प्रजातियां शामिल हैं. प्रदेश में पाए जाने वाली कई वनस्पति प्रजातियां दुर्लभ किस्म की हैं जिससे राज्य की वनस्पति की महत्ता और भी अधिक हो जाती है. वर्तमान में उद्योगों द्वारा उत्पादों में प्राकृतिक सामग्री व कई औषधीय पौधों के रस के बढ़ते उपयोग के कारण यहां पाए जाने वाले औषधीय पौधों से जुड़े सदियों पुराने पारम्परिक मूल्यों में भारी बढ़ोतरी हुई है.
गत दशक के दौरान प्रदेश में विभिन्न उद्योगों का ध्यान जैव संसाधन आधारित उद्योगों को स्थापित करने की ओर गया है. प्रदेश में पौधों, जीव-जन्तुओं तथा सूक्ष्म जीवों की जैव विविधता की समृद्धता के कारण ऐसे उद्योगों में निवेश की सम्भावना बढ़ जाती है. हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में स्थित हिमाचल में पाए जाने वाले विभिन्न दुर्लभ पौधों को दवा उद्योग में प्रयोग करने की अपार सम्भावनाएं हैं.
प्रदेश में विद्यमान जैविक संसाधन उद्योगों के निवेश के लिए इस राज्य को एक आदर्श स्थान बनाते हैं. वैसे भी उद्योगों के लिए यहां पर्याप्त भूमि के साथ किफायती बिजली की आपूर्ति भी उपलब्ध हैं. नदियों व बर्फ पिघलने की क्रिया से भरपूर प्राकृतिक संसाधनों से प्रदेश में पानी की पर्याप्त उपलब्धता है.
यद्यपि प्रदेश में पाए जाने वाले लगभग 60 औषधीय पौधे विलुप्त होने की कगार पर हैं तथापि हितधारकों की सक्रिय सहभागिता तथा जैव विविधता बोर्ड द्वारा आरम्भ किए गए सघन प्रयासों से ऐसे दुर्लभ पौधों तथा इनकी प्रजातियों को बचाने में सहायता मिलेगी और यह परियोजना वास्तव में प्रदेश की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण में एक वरदान सिद्ध होगी.