शिमला. पांच साल सत्ता के सिंहासन पर बैठी कांग्रेस अभी 9 के फेर में फंसी है. कमोबेश यही हाल नगर निगम चुनावों में भी था, उस वक्त 6 के फेर में कांग्रेस फंस गयी थी. जिसके कारण नगर निगम की सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस चुनाव में कांग्रेस का क्या होगा? कहा नहीं जा सकता लेकिन जल्द ही 9 सीटों का फैसला नहीं किया गया तो कांग्रेस में नेताओं का असंतोष बढ़ सकता है.
शिमला नगर निगम के चुनावों के समय कांग्रेस पार्टी शिमला के कुल 34 वार्डों में भी अपने प्रत्याशी नहीं उतार पायी थी. 6 वार्डों में प्रत्याशियों पर आखिर तक फैसला ही नहीं हुआ. यही नहीं कांग्रेस के नामित पार्षद का लास्ट में टिकट काट दिया गया था तो वह बगावत कर भाजपा में शामिल हो गये थे. उसी के बूते भाजपा पहली बार नगर निगम शिमला पर काबिज होने में सफल हो गयी थी.
विक्रमादित्य का टिकट
यही हाल अब विधानसभा चुनावों में है. 9 के फेर में फंसी कांग्रेस के लिये अपने ख़ासमख़ास का टिकट तय करना मुश्किल हो गया है. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह 4 सालों से शिमला ग्रामीण में सक्रिय हैं. सभी को टिकट दिलवाने में अहम भूमिका निभाने वाले विक्रमादित्य की अपनी बारी में पेंच फंस गया है.
कौल सिंह की बेटी
मंडी में कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर विरासत के तौर पर अपनी बेटी चंपा ठाकुर को टिकट दिलवाना चाहते हैं. वहीं पालमपुर में विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल अपने बेटे को राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं. इसके साथ ही नालागढ़ से वीरभद्र अपने सेनापति बाबा हरदीप सिंह के लिये राजनीतिक बिसात बिछाना चाहते हैं.
बिना फैसले के नामांकन भर दिया
ऐसे ही 9 स्थानों पर अभी तक फैसला नहीं हो पा रहा है. कल यानी 23 अक्टूबर को 3 बजे तक नामांकन करने का समय शेष बचा है. कहीं ऐसा न हो कि नामांकन का वक्त निकल जाये और प्रत्याशी तय ही न हो. इसी को देखते हुए चंपा ठाकुर ने तो नामांकन भी कर दिया है जबकि विक्रमादित्य सिंह सहित अन्य टिकट की चाहत रखने वाले भी कल नामांकन भर लेंगे, चाहे टिकट तय हो या न हो.
5 साल सत्ता में रहने वाली पार्टी ने चुनावों को लेकर कितनी संजीदगी से काम किया उसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. कांग्रेस के ज्यादातर नेता बागी होते जा रहे हैं. अब यही बागी कांग्रेस की नैया पार लगाते हैं या नगर निगम की तरह डुबोते हैं, इसका पता तो चुनाव के बाद ही चल पायेगा.