दुनिया में बहुत कम लोग ही अपने नाम को एक सार्थक पहचान या मुकम्मल अर्थ दे पाते हैं. मुजाहिद खान उन्हीं लोगों में से एक हैं जिन्होंने अपनी शहादत से न केवल अपने नाम को बल्कि अपने पूरे समाज को भी एक नई पहचान बख्शी है.बिहार के भोजपुर जिले के पिरो गांव के निवासी 25 वर्षीय मुजाहिद खान ने अपनी अदम्य वीरता और अतुलनीय बलिदान से का परिचय देते हुए अकेले दम पर घंटो आतंकियों से लोहा लिया. सीआरपीएफ की 49 वीं बटालियन में तैनात मुजाहिद ने पूरी निर्भयता और मुस्तैदी से आतंकियों का सामना किया और आम नागरिकों की हिफाजत की. मुठभेड़ के दौरान ही श्रीनगर में उनकी शहादत हुई.
मुजाहिद का अर्थ होता है-पराक्रमी,योद्धा, विधर्मियों से युद्ध करने वाला
इन सारे अर्थों को मुजाहिद ने अपनी जिंदगी में उतार लिया था. देश के दुश्मनों (विधर्मियों) के खिलाफ एक योद्धा के रूप में उन्होंने मरते दम तक लड़ाई लड़ी. ‘मुजाहिद’ शब्द की व्याख्या करने पर यह अर्थ निकलता है-वह व्यक्ति जो जिहाद में लीन हो.
वाकई मुजाहिद की जिंदगी एक सच्चे सिपाही की जिंदगी थी .अपनी शाहदत से उन्होंने जिहाद की असली व्याख्या पेश की है.जिहाद असल मायने में ‘वतनपरस्ती’ और ‘मादरे वतन की हिफाजत’ के अलावा कुछ और नहीं है. मुजाहिद की क़ुरबानी ने इस बात को साबित कर दिया है.
एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले मुजाहिद के पिता अब्दुल खैर खान पेशे से राजमिस्त्री हैं. मुजाहिद पाँच भाइयों में सबसे छोटे और अविवाहित थे.
अमन और मुहब्बत का पुल बनी शहादत
मुजाहिद जिस इलाके के थे वह इलाका पिछले कई सालों से साम्प्रदायिक घटनाओं की वजह से चर्चा में रहा है. दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों की वजह से आमलोगों के बीच की एकता और मुहब्बत शक और घृणा में तब्दील होती जा रही थी.
चन्द स्वार्थी असामाजिक कट्टरपंथियों की वजह से पूरे इलाके में लोगों का एक दुसरे पर विश्वास कम होता जा रहा था. दुर्गा पूजा और मुहर्रम पर जानबूझकर माहौल बनानेवाले इंसानियत के दुश्मनों को आज मुजाहिद की शहादत ने करारा जवाब दिया है. इस शहादत ने उन मतलबपरस्तों को एक करारा तमाचा जड़ा है जो मजहबों के बीच नफरत का बीज बोकर अपनी रोटी सेंकते हैं.
आज मुजाहिद की जनाजे की यात्रा में पूरा पिरो शहर उमड़ पड़ा था. क्या हिन्दू क्या मुसलमान सारा शहर एक साथ कंधे से कन्धा मिलाकर अपने हीरो को सलाम पेश कर रहा था.
पूरे दिन बाजार को बंद राखकर लोगों ने अपनी श्रधांजलि दी. वास्तव में मुजाहिद की शहादत ने समाज को एक साथ कई सबक दिए हैं. मसलन वतनपरस्ती किसी की जागीर या विशेषाधिकार नहीं है बल्कि यह तो एक जूनून और पवित्र जज्बा है.
सबसे बड़ा और जरूरी सबक -इंसानियत को असल में पहचानने और अमल में उतारने का
पिछले कुछ सालों से जिस पिरो में सामाजिक वैमनस्य चरम पर था वहां आज हजारों लोगों के एकजुट समूह ने यह साबित कर दिया कि वे इन मतलबी चालों का पर्दाफाश करके रहेंगे. अवाम की एकता से साम्प्रदायिकता की हर चाल को नेस्तनाबूद करेंगे. मुल्क की रूह की हिफाजत के लिए हर कीमत पर आपसी एकता और मुहब्बत को बनाये रखेंगे.
पिरो निवासी मो.नदीम(29) ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यह एक अभूतपूर्व माहौल है. एक नौजवान ने अपनी शहादत से हम सबको भाईचारे के मजबूत बन्धन में बांध दिया है. पूरा शहर शोकग्रस्त है. हमें उसकी शहादत पर गर्व है.”
एक अन्य नौजवान संदीप कुमार ने मुजाहिद की शहादत पर कहा, “हमें गर्व है कि हम शहीद मुजाहिद की धरती से हैं. उनकी शहादत ने हमारा मान बढ़ाया है.”
पिरो के पड़ाव मैदान में जहाँ जनाजे की नमाज अदा की गयी,चारों ओर लोगों के हाथों में तिरंगा लहरा रहा था.
शहीदों का अपमान कब तक?
जहाँ एक और लोगों को अपने हीरो की शहादत पर फख्र था वहीं इस बात का गुस्सा भी था कि राज्य सरकार का कोई भी प्रतिनिधि या सांसद इस जनाजे में शामिल नही हुआ.
सरकार की ओर से भेजे गए 5 लाख के चेक को परिवार ने विरोधस्वरूप लौटा दिया है.
रात दिन सोशल मीडिया पर सक्रीय रहने वाले राज्य के मुखिया ने इस शहादत पर एक भी ट्वीट करने की जरूरत नहीं समझी. इस पूरे प्रकरण को लेकर आमलोगों में काफी आक्रोश है. उम्मीद है सियासी रहनुमाओं की नींद जल्द ही खुलेगी.
बहरहाल मुजाहिद की शहादत ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को तो मजबूत किया ही है साथ ही तमाम नौजवान युवाओं के मन में वतनपरस्ती की जो प्रेरणा भरी है उसकी गूँज दूर तक जायेगी.
आखिर में अपने सच्चे नायक को इन शब्दों के साथ अपना इंक़लाबी सलाम
“मेरे जूनूँ का नतीजा जरूर निकलेगा.
इसी सियाह समुन्दर से नूर निकलेगा.”
हमारे दौर के असल नूर मुजाहिद को भावपूर्ण श्रद्धांजलि.
बहुत ही सुंदर व् ओजपूर्ण शब्दों के साथ लिखा गया एक मार्मिक, दिल को छू लेने वाला लेख है। मैं लेखक के साथ -साथ उस शहीद जवान को भी हृदय से बारंबार नमन करता हूँ । जय हिंद ।