शिमला. भाजपा के बाराती चाहे पार्टी को सत्ता में लाने में सफल रहे हैं. मगर भाजपा का दुल्हा यानी भाजपा से मुख्यमंत्री प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल को सुजानपुर से शिकस्त मिली हैं. कांग्रेस प्रत्याशी तथा कभी धूमल के चेले रहे राजेन्द्र राणा ने प्रेम कुमार धूमल को चित कर दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कटाक्ष किया था कि कांग्रेस दुल्हन तैयार रखे भाजपा का दुल्हा अपने आप आ जाएगा.
इसके चंद ही दिनों के बाद कांग्रेस उच्च कमान ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को भाजपा में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. हाल ही में एग्जिट पोल आने के बाद से सुजानपुर में नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ था. मंत्री बनने की फिराक में भाजपा नेता धूमल दरबार में हाजरी भर रहे थे.
मिठाइयां बंट रही थी तथा कुछ अधिकारी धूमल दरबार में माथा टेक अपने लिए अहम पद भी सुनिश्चित कर आए थे. यहां तक कि धूमल ने भाजपा नेताओं को यह संदेश भी दे दिया था कि मंत्री केवल योग्यता के आधार पर बनाए जाएगें. अब भाजपा के दूल्हे के पराजित होने के बाद देखना यह होगा कि राज्य का भावी मुख्यमंत्री कौन होगा.
प्रदेश के इतिहास में यह तीसरा अवसर है जब मुख्यमंत्री पद के दावेदार को राज्य के मतदाता ने अस्वीकार किया है. इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार भी स्व मानचंद राणा के हाथों दो बार पराजित हो चुके हैं. प्रचार के दौरान सुजानपुर की जनता ने धूमल पर कई सवाल खड़े किए थे कि जब पहले मुख्यमंत्री रहते हुए.
इस क्षेत्र का काम नहीं किया तो अब कैसे भरोसा कर ले. हुआ भी ऐसा ही जनता ने समाज सेवक और कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र राणा पर भरोसा जताया. आलम यह है शुरू से ही यहां कांटे की टक्कर मानी जा रही थी. मगर धूमल को मुख्यमन्त्री का चेहरा घोषित करते ही संभावनाएं बढ़ गई थी कि धूमल इस सीट पर जीत दर्ज करेंगे. हालांकि मार्जन कुछ ज्यादा नहीं रहेगा.
धूमल के सीएम प्रोजेक्ट होने से किसी सीट पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला. चुनावी नतीजा चौंकाने वाला आया है. दिग्गज हो कि धूमल का पहले तो टिकट आवंटन में अधिक भूमिका नहीं रही. उसके बाद विधानसभा क्षेत्र हमीरपुर से बदलकर सुजानपुर कर दिया गया और चुनाव के कुछ रोज पहले सीएम प्रत्याशी की घोषणा कर दी गई.
इस दौरान उन्हें अपने लिए नई जगह प्रचार का मौका नहीं मिला और प्रदेश में रैली करने में व्यस्त रहे. उधर राजेन्द्र राणा इस हलके में लोगों से जुड़े रहे है समाज सेवक के तौर पर धरातल पर काम किया है. जिसका उन्हें फायदा भी जनता ने दिया.
इससे पूर्व की यदि बात करें तो 2012 में राणा निर्दलीय भारी मार्जिन से जीते थे. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कैंडिडेट बनने पर इन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दिया और इनकी पत्नी बतौर कांग्रेस प्रत्याशी उपचुनाव में उतरी और हारी. भाजपा के प्रत्याशी नरेंद्र जीते मगर मार्जन इतना अधिक नहीं रहा. जिसके बाद अब मुख्यमंत्री का दावेदार होने के बावजूद भी भाजपा को यहां से शिकस्त ही खाने को मिली है. पार्टी के लिए जो बड़ा सदमा है.