नई दिल्ली. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स (Institute For Governance, Policies & Politics – IGPP), नई दिल्ली द्वारा जर्मन रिसर्च फाउंडेशन, बॉन, जर्मनी, लीबिग यूनिवर्सिटी जीसेन, जर्मनी के सहयोग से 24 और 25 नवंबर को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में “1960 के दशक से पर्यावरण नीति पर चर्चा: यूरोप और एशिया में राजनीति, समस्याएं और पर्यावरण नीतियों की रिवायत” को लेकर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है.
कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए जेएनयू के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स के प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा कि यदि हम पर्यावरण से संबंधित समस्याओं से निजात पाना चाहते हैं तो हमें सामाजिक आदतों को को बदलना होगा. उन्होंने आगे कहा कि सामाजिक आदतों में बदलाव से पर्यावरण की स्थिति बेहतर होती है. विवेक कुमार ने औपनिवेशिक युग पर्यावरण को कैसे प्रभावित करता है, जलवायु परिवर्तन के आकलन पर आईपीसीसी रिपोर्ट को लेकर भी अपनी बात रखी. इस दौरान प्रोफेसर विवेक कुमार ने भारत में समाजशास्त्र के पितामह कहे जाने वाले राधा कमल मुखर्जी का भी जिक्र किया.
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जर्मनी के कई विश्वविद्यालयों के साथ जुड़े हुए पीडी डॉ डेटलेफ ब्रिसन ने पर्यावरण के संबंध में जनसंचार माध्यमों को लेकर कहा कि मीडिया पर्यावरण नीतियों को लोगों तक पहुंचाने में बड़ा रोल निभा सकती है. इसके अलावा उन्होंने मीडिया द्वारा पर्यावरण के अन्य मुद्दों को कवर करने को लेकर भी विस्तृत रूप से अपनी बात रखी.
जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल स्टडीज के डीन कौशल कुमार शर्मा ने हिमालय में पारिस्थितिक बहाली कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि पर्यावरण केवल एक मुद्दा नहीं बल्कि इसका मुख्य मकसद “दुनिया को बचाना” है. उन्होंने आगे कहा कि पर्यावरण के मुद्दे समय के साथ बदलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि हमें प्रयावरण को बचाने के लिए ‘Local Wisdom’ का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने 1960 के बाद की पर्यावरणीय नीतियों, 1972 स्टॉकहोम (स्वीडन) में पर्यावरण को लेकर हुए पहले सम्मेलन के साथ-साथ COP-26 एवं COP-27 को लेकर भी अपनी बात रखी. कौशल कुमार ने कहा कि एशिया में कुल मानव आबादी का 60 फीसदी हिस्सा रहता है लेकिन आज भी हम पश्चिमी देशों के बनाए हुए पर्यावरणीय कदमों को अपनाते हैं.
देश के बड़े समाजशास्त्री प्रोफेसर डॉ आनंद कुमार ने कहा कि पश्चिम के देशों में औद्योगिक और कॉरपोरेट के पक्ष में पर्यावरण कुछ विकास विरोधी है. उन्होंने कहा कि 1973 के चिपको आंदोलन में मीरा बहन और बहुगुणा औद्योगीकरण के खिलाफ तब भी खड़े थे जब गढ़वाल के युवा पर्यावरण को त्यागकर को लेकर उद्योग के पक्ष में खड़े थे. इसके अलावा उन्होंने कैंसर एक्सप्रेस (अबोहर-जोधपुर) का भी जिक्र किया. आनंद कुमार ने कहा कि हम दुनिया के कुल संसाधनों का 20 फीसदी ही उपभोग करते हैं.
लोकटक विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष असनी कुमार सिंह ने लोकटक झील मणिपुर जो दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है में पर्यावरण संकट से जुड़े हुए मुद्दों को लेकर विस्तार से अपनी बात रखी. 1993 में रामसर कन्वेंशन के तहत भारत सरकार ने लोकटक झील को अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में घोषित किया था.
प्रो डॉ हो थी तान्ह / अब्दुल फिकरी अंगा की रेक्सा ने इंडोनेशिया में पर्यावरण के मुद्दों की समस्या के संबंध में पेपर प्रस्तुत किया. इस पेपर में इंडोनेशियाई सरकार की पर्यावरण नीति में हुए बदलावों को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई है.
प्रो गुयेन तुआन अन्ह ने सार्वजनिक प्राधिकरण और वियतनाम में पर्यावरण संरक्षण की समस्या को लेकर अपना पेपर प्रस्तुत किया. पेपर में वियतनाम में औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण के लक्ष्य के साथ-साथ पर्यावरणीय समस्याओं, पर्यावरण प्रदूषण, जैव विविधता में गिरावट से लेकर जलवायु परिवर्तन तक के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है.
सम्मेलन के बारे में
सम्मेलन के दौरान शिक्षाविदों, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और दुनिया भर के अन्य विशेषज्ञों ने 1960 के दशक से यूरोप और दक्षिण एशिया की पर्यावरण नीतियों को लेकर चर्चा की और इन दो क्षेत्रों के बीच में असमानताओं और अन्य कारणों को लेकर चर्चा कर इनसे संबंधित शोध पेपर भी प्रस्तुत किए. हालांकि दुनिया के इन दो अलग हिस्सों में राजनीति इतिहास के माध्यम से अलग-अलग विविधता प्रस्तुत करती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियां एक ऐसी समस्या बनी हुई हैं जिसके लिए वास्तव में वैश्विक अनुपात में समाधान की जरूरत है.
नीतिगत क्षेत्रों के विश्लेषण का उपयोग स्पष्ट और परिणामोन्मुख अनुसंधान प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किया जा सकता है: राजनीतिक लोग क्या करते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं, और अंततः वे क्या हासिल करते हैं? अब तक, नीति क्षेत्रों को ज्यादातर मंत्रालयों या प्रशासनों के विभागीय डिवीजन के परिणामों के रूप में देखा जाता है और उनके प्रशासनिक कार्यों के साथ मापा जाता है. वे समस्याग्रस्त माने जाने वाली स्थितियों को प्रस्तुति और चर्चा के माध्यम से समस्या का समाधान तलाशते हैं. राजनीतिक क्षेत्र मुद्दों के “राजनीतिकरण” के जरिये विकसित होते हैं.
IGPP के बारे में
इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स (IGPP) विवेक मंथान फाउंडेशन (VMF) की एक थिंक टैंक पहल है जो सार्वजनिक नीति अनुसंधान और विश्लेषण के लिए समर्पित है. IGPP स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर शासन और नीति क्षेत्र में एक बड़ी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है और यह सार्वजनिक नीति अनुसंधान, विश्लेषण और सलाह प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है.
IGPP सरकार को विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों को समझने और बेहतर नीति और प्रशासन बनाने में मदद करने के लिए पहल करता है, क्योंकि IGPP की परिकल्पना एक शोध और नीति-केंद्रित संस्थान के रूप में की गई है. IGPP शासन और सार्वजनिक नीति के विभिन्न मुद्दों पर उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान के अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षाविदों, नागरिक समाज, सरकार, उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों जैसे विभिन्न हितधारकों के साथ जुड़ा हुआ है. संस्थान का मुख्य लक्ष्य विशिष्ट मुद्दों पर फोकस क्षेत्रों के संबंध में प्रभावी नीति डिजाइन, कार्यान्वयन और शासन तंत्र की ओर योगदान करना है.
कार्यक्रम को देखने के लिए लिंक – https://fb.watch/g-5vxPLfoV/