दो दिन के इंतजार के बाद मुझे रिकोंगपियो से कलपा के लिये बस मिल गयी. कलपा बस स्टैंड पहुंचने पर जिस किसी से पूछा, सबको गुरू जी का घर मालूम था. पहाड़ पर घंटे भर की चढ़ाई के बाद मैं भारतीय लोकतंत्र के पहले मतदाता श्याम शरण नेगी के दरवाजे पर खड़ा था.
बेटे के घर के ठीक बगल में अपने पुश्तैनी कमरे में श्याम शरण नेगी रहते हैं. दरवाजा अधखुला था. नॉक के बाद जवाब पाये बिना मैं कमरे में दाखिल हो गया. बल्ब की पीली रोशनी में मास्टर नेगी बौद्ध मंत्र का जाप कर रहे थे. एक हीटर जल रहा था. वे पास बैठने का इशारा करते हैं. बताते हैं, आजकल घुटनों में दर्द बढ़ गया है. आंखों से बहुत कम दिखता है. टीवी देखना कई साल पहले छोड़ चुके हैं मगर रेडियो का साथ अबतक नहीं छूटा है. आकाशवाणी पर समाचार सुनते हैं और मन की बात कार्यक्रम का इंतजार करते हैं. जानकारी का एकमात्र स्रोत रेडियो है. फेसबुक-ट्वीटर का पता नहीं है.
वे लोकतंत्र के पहले महापर्व को याद करते हुये चहक उठते हैं कि उस बरस बर्फबारी की डर से 6 महीने पहले ही किन्नौर में चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया. साल 1951 में 25 अक्टूबर का दिन था जब पहली बार किन्नौर में वोट डाला गया. गुरुजी का भारत का पहला मतदाता बनना तो महज संयोग रहा. लेकिन वर्षों की गुलामी के बाद अपनी सरकार को
चुनने की खुशी वो उत्साह से बताते हैं. वे आजादी से पहले के भारत को याद करते हुये कहते हैं कि अंग्रेजों ने सभी प्रमुख विभागों पर कब्जा कर रखा था लेकिन वे दिखते नहीं थे. तब के राजाओं को मोहरा बनाकर जनता पर शासन करते थे.
श्याम शरण नेगी अबतक 27 बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदान कर चुके हैं. एक वाकया सुनाते हैं जब उन्होंने पीठासीन अधिकारी को मनाकर आधे घंटे पहले वोट किया और उसी दिन ड्यूटी ज्वाइन करने निकल गये. युवाओं से वह कहते हैं कि मतदान वाले दिन समय निकाल कर वोट जरूर करें, क्योंकि अगर वह वोट नहीं करते तो सरकारों की शिकायत करने और समस्याओं पर आवाज उठाने का उन्हें कोई हक नहीं. आखिर उन्हें खुद अपनी सरकार चुनकर उसके काम तय करने चाहिए.
श्याम शरण नेगी के जमाने में ‘बहुविवाह’ का प्रचलन था. वे सात भाई थे. हंसते हुये बताते हैं कि उनमें तीन तो मेरे बाप की उमर के थे. लेकिन भाइयों में बंटवारा के बाद सबको शादियां करनी पड़ी. दो साल हुये उनकी पत्नी नहीं रही. बताते हैं 6 साल छोटी थी. उनके चार लड़के और पांच लड़कियां हुईं. बेटे, पोते और परपोतों का बड़ा परिवार है. लेकिन सभी अलग-अलग रहते हैं. कहते हैं, मल्टीपल मैरेज के जमाने में सभी साथ रहते थे. लेकिन परिपाटी खत्म होने के बाद सब अलग-अलग रहने लगे हैं. हालांकि वो मल्टीपल मैरेज को अच्छा नहीं मानते हैं.
श्याम शरण नेगी 1952 में सिर्फ एक बार किन्नौर से बाहर हरिद्वार गये थे. खुद को कुएं का मेढ़क बोलते हैं. कहते हैं कि न ही शिमला गया, न दिल्ली ही देखा है. लाहौल भी नहीं गया. 100 साल की जिन्दगी यहीं बिता दी. वे बताते हैं कि इतने सालों में दुनिया बदल गयी. लोकतंत्र भी बदला है. पहले सिर्फ कांग्रेस थी. तब कोई वोट मांगने नहीं आता था. जनता पार्टी बनी तो सबको जनता के बीच आना पड़ा.
पहले लड़कियों को कोई पढ़ाता नहीं था. ज्ञान का प्रसार हुआ है. इसके साथ ही कलपा भी बदल गया. पहले ठंड में लोग नीचे चले जाते थे. पहाड़ पर घर नहीं थे. रास्ते खुले तो पहाड़ों पर भी घर बन गये. बहुत कुछ बदल गया है. बस सामने का किन्नर कैलाश वैसा का वैसा है.
जब मैं जाने को हुआ. उन्होंने थोड़ी देर और बैठने को कहा. फिर शाम होने का अनुमान लगाया. ठंड बढ़ती देख रुकने को कहा. मैने उनके झुर्रिदार हाथों को अपने हाथों में लिया. जाने की अनुमति मांगी. जाते हुये उन्होंने कहा…
…अगली बार फिर मिलने आना. मैं कुछ बोल नहीं पाया.