कांगड़ा(धर्मशाला). स्मार्ट सिटी धर्मशाला के सीवरेज की गंदगी नाले के पानी में जहर घोल रही है. आईपीएच विभाग की इस हरकत से आमजन सहित पशुओं की सेहत से भी सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा है.
इससे पहले भी आईपीएच विभाग की लापरवाही के कारण प्रदेश की राजधानी शिमला में सीवरेज लीकेज के कारण भयंकर संक्रमण फैला था. अब फिर विभाग ने बड़ी लापरवाही बरतते हुए संक्रमण व बीमारी फैलाने का इंतजाम कर दिया है.
विभाग पिछले कई महीनों से शहर से सीधे इनलेट बॉक्स में आ रही सीवरेज वेस्ट मैटीरियल को स्क्रीन एरिया से ही पाइप डालकर सीधे खुले नाले में फेंक रहा है. यह नाला आगे जाकर चरान खड्ड में मिल रहा है और चरान के पानी को पूरी तरह से दूषित कर रहा है. चरान का पानी आगे जाकर दूसरी अन्य खड्डों के साथ मिल रहा है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में पेयजल परियोजनाएं भी चल रही हैं.
यह है सीवरेज प्रकिया
इस प्रकिया में धर्मशाला शहर से लोगों के घरों व शौंच का पानी सीवरेज पाइपों के माध्यम से सीधा टीट्रमेंट प्लाट में पहुंच रहा है. यह पानी पाइप से सीधा इनलेट बॉक्स में गिर रहा है. इनलेट बॉक्स में आने वाली गंदगी लिफाफे व अन्य सामग्री फिल्टर कर पानी व वेस्ट मैटीरियल स्क्रीन एरिया से गुजारा जाता है. इसमें यह पानी सीधा टैंक में जाता है. इस टैंक में पानी को फिल्टर किया जाता है और स्लज भी पाइपों के जरिए दूसरे टैंकों में भेजा जाता है.
इसके बाद विभिन्न टैंकों से गुजर कर यह पानी अंतिम प्रकिया के लिए पहुंचता है व स्लज अलग टैंकों में रखने के बाद खाद के रूप में निकाल लिया जाता है. इस पानी में ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर यह पानी फिल्टर बेड में फेंका जाता है. इसके बाद इस पानी को बाहर फेंका जाता है. लेकिन धर्मशाला सीवरेज प्लांट में इस गदंगी को बिना फिल्टर बेड के ही बाहर कर दिया जाता है.
‘पानी को ट्रीटमेंट करने के बाद ही छोड़ रहे हैं’
इस बारे जब नगर निगम के सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य अधिशाषी अभियंता राजेश मोंगर से बात की गई तो उन्होंने कहा वह पानी को ट्रीटमेंट करने के बाद ही छोड़ रहे हैं, क्योंकि हम इस पानी को रियुज नहीं करते हैं. उन्होंने कहा बीओडी लेवल को 30 से नीचे करके ही छोड़ते हैं और जो रिजल्ट हैं वो लैब में सैंपलिंग और टेस्टिंग के बाद 10 से भी नीचे आ रहे हैं.
बीमारी लगने की गुंजाइश नहीं
उन्होंने कहा कि प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड भी समय-समय पर टेस्टिंग करता रहता है और हाल ही में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने इसकी टेस्टिंग की है, तो उसका रिजल्ट 3.8 आया हुआ है, जो की बहुत ही कम है. राजेश मोंगर ने कहा की इस पानी के छोड़ने से निचले क्षेत्रों के लोगों को कोई भी बीमारी लगने की गुंजाईश नहीं रहती है.