सुरेंदर नगर जिले के जयंत सिंह एक राजपूत (दरबारी) परिवार से हैं और अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चाय की दुकान चलाते हैं. चाय की दुकान के अलावा उनके पास खेत भी हैं. मुख्यतः कपास (कॉटन) की खेती से उनकी आमदनी ठीक हो जाती है. लेकिन पिछले कुछ महीनाें में सब ठीक नहीं रहा है. पहले अचानक बाढ़ आ जाने की वजह से कपास की फसल बर्बाद हो गयी. खेतों से पानी निकल जाने के बाद जब उन्होंने चने की फसल लगायी और फसल आने से कुछ समय पूर्व ही उनके गांव से कुछ किलोमीटर दूर स्थित डैम से पानी छोड़ दिया गया. चने की फसल भी बर्बाद हो गयी.
संकट के इस समय में बैंक ने भी उनकी कोई मदद नहीं की. उन्होंने बताया कि बाढ़ के मुआवजे के तौर पर कुछ रकम बैंक खाते में जमा हुई लेकिन वो इतनी कम थी कि वो उनके पिछले ब्याज (कपास की खेती के समय लिए हुए कर्ज का ब्याज) को चुकाने में बैंक ने सारा पैसा काट लिया.

जयंत के गांव और उसके पास के चार गांवों की आबादी तक़रीबन 25 हजार है और सभी के लिए इस चुनाव में यही एक बड़ा मुद्दा है कि डैम का पानी छोड़ते वक्त उनका ख्याल क्यों नहीं रखा गया? और फिर एक के बाद एक हुए नुकसान (पहले बाढ़ और अब डैम की पानी) को लेकर सरकार इतनी असंवेदनशील क्यों है? उन्हें मुआवजा क्यों नहीं मिला अभी तक या/और पर्याप्त मुआवजा क्यों नहीं मिला?
जयंत सिंह और उनके गांव के किसानों की ये कहानी थोड़ी अलग जरूर है लेकिन किसानों के बीच असंतोष की कहानी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के जिले खासकर सुरेंदर नगर, राजकोट, अमरेली, बोटाड, भावनगर आदि में कई जगह देखने को मिली. इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दो दशक से राज्य में मिले आर्थिक अवसर की वजह से बहुत से लोग अमीर हुए. बेहतर शिक्षा, व्यापर में बेहतर अवसर की वजह से कुछ लोग अपनी जमीनें बेचकर शहरों की तरफ कूच कर गए और अपनी सफलता के झंडे भी गाड़े. लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं रहा. अब भी गुजरात की बहुसंख्य आबादी (करीब 60 प्रतिशत) गांव में रहती है और उनका मुख्य पेशा अभी भी खेती है.

सौराष्ट्र क्षेत्र के किसान मुख्यतः कॉटन और मूंगफली की फसल उगाते हैं. पिछले कुछ साल में खाद-बीज के दम बढ़ गए जिससे खेती की लागत बढ़ गयी लेकिन उस अनुपात में आमदनी नहीं बढ़ी. राजकोट के महिका गांव के किसान जिनमें ज्यादातर कोली, पटेल और राजपूत (दरबारी) समुदाय के किसान हैं, उनका कहना था की आज भी हमें एक मन (20 किलो) कॉटन का भाव 800-900 रुपये ही मिलता है जबकि मोदी जी ने वादा किया था कि वो इस भाव को 1500 रुपये कर देंगे. किसानों की इस बात को बोटाड जिले के मुन्ना, जो की बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ता भी हैं स्वीकार करते हैं कि किसानों की ये परेशानी है जिससे किसान इस बार थोड़े हमारी पार्टी से नाराज है.
हालांकि गुजरात में कृषि की विकास दर देश की विकास दर से अधिक है. 2010-11 में गुजरात में कृषि दर में वृद्धि 15 प्रतिशत के पास रही जो की देश की ओवरआल कृषि वृद्धि दर से काफी आधिक है लेकिन राज्य की कृषि दर में 2005-06 के मुकाबले 2011 में 7 प्रतिशत की कमी आई है, जो काफी अहम है. न सिर्फ कृषि विकास दर में कमी आई है बल्कि ये क्षेत्र रोजगार सृजन भी नहीं कर पा रहा है. किसानों की परेशानी कोई नयी परेशानी नहीं है. हाल के दिनों में ये देशव्यापी परेशानी बनी हुई है. गुजरात में किसान पहले भी परेशान रहे हैं लेकिन हर बार के चुनाव में कुछ अलग मुद्दे आ जाते थे और किसानों के मुद्दे दब जाते थे, लेकिन इस बार सरकार द्वारा नोटबंदी और GST का लागू करने से लोगों की परेशानी बढ़ी और इसका असर किसानों पर देखने को मिल रहा है, ऐसा भूमित पटेल कहते है जो बोटाड जिले के एक विद्यालय में शिक्षक है.

सरकार से किसानों की नाराजगी इस बार के चुनाव में कितना असर डालती है इसका पता तो 18 दिसंबर को ही पता चलेगा लेकिन इतना जरूर है इनकी नाराजगी ने सतारूढ़ पार्टी के लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें जरूर खींच दी हैं. हालांकि इन मुद्दों से निपटने के लिए बीजेपी के पास एक उम्मीद नरेन्द्र मोदी हैं.
बावजूद परेशानियों के लोगों में मोदी को लेकर कोइ बड़ा गुस्सा नहीं दिखता है, हां थोड़ी नाराजगी जरूर है. इसलिए आने वाले दिनों में मोदी की रैली पर बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस की नजरें हैं. उनके भाषण को लोग कैसे लेते हैं, इस पर इस बार का चुनाव परिणाम तय होगा.
(लेखक अशोका यूनिवर्सिटी में रिसर्च फेलो हैं और देश के कई राज्यों में चुनाव विश्लेषण का काम कर चुके हैं.)