(गतांक से आगे…)
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शिमला से मंडी जाते हुए सोलन के डारलाघाट में अम्बुजा सीमेंट का एक बड़ा प्लांट मिलता है, आस पास के पहाड़ों से पत्थर के खनन के चिन्ह भी दिखतें हैं. बिलासपुर की सीमा पार करते-करते सतलज के दर्शन होते हैं. पतले पाट और तेज बहाव वाली सतलज को देख कर विश्वामित्र की कहानी याद आती है जिन्होंने प्रसन्न होकर सतलज को चिर तन्वंगी होने का वरदान दिया था और तबसे हिमाचल में सतलज की धार कहीं मोटी नहीं होती, पतली ही बनी रहती है.
मंडी जिले में 10 सीटें हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पांच भाजपा ने जीती थीं और पांच कांग्रेस ने. जिले की सियासत का एक तार मुंबई सिनेमा से भी जुड़ता है. अभिनेता सलमान खान की बहन अर्पिता, मंडी शहर के कांग्रेस विधायक और मंत्री अनिल कुमार शर्मा की पुत्रवधू हैं. जिला कांग्रेस के दूसरे दिग्गज, द्रंग के विधायक और मंत्री ठाकुर कौल सिंह, इन दिनों कुछ और कारणों से चर्चा में हैं. CM वीरभद्र, मंत्री विद्या स्टोक्स और अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के गुटों के बीच बंटी प्रदेश कांग्रेस के कुछ विधायकों ने सुक्खू को पत्र लिखकर वीरभद्र की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग की है. हिमाचल की राजनीति में “पत्र बम” कही जा रही इस घटना में एंटी वीरभद्र माने जाने वाले कौल सिंह के भी शामिल होने के अंदेशे लगाये जा रहे हैं.
मगर गुटबाजी में भाजपा भी पीछे नहीं. जिले के वरिष्ठतम नेताओं में से एक, धरमपुर के भाजपा विधायक महेंदर सिंह खुले तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के विरोधी हैं और सेराज के भाजपा विधायक जय राम ठाकुर भी केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में नड्डा के मुकाबले धूमल का पलड़ा इस जिले में थोड़ा हल्का पड़ जाता है. दोनों नेताओं की आपसी लड़ाई के चलते बाग़ी उम्मीदवारों पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाता है.
मंडी से कुल्लू जिले की ओर निकलते हैं तो ब्यास नदी रास्ते के किनारे-किनारे हमारे साथ चलती है, ठेठ कुल्लू तक. पंडोह में इस पर बांध बना दिया गया है. बाँध का फाटक खुला हुआ है और फ़ेनिल-सफ़ेद पानी शोर करता हुआ नदी में गिर रहा है. हिमाचल में पन-बिजली की ऐसी तमाम छोड़ी-बड़ी परियोजनाएं हैं जिनके चलते ये एक एनर्जी-सरप्लस (बिजली की अधिकता वाला) राज्य है और अन्य राज्यों को बिजली बेचता है. औट से ठीक पहले हमारा रास्ता बांये मुड़ता है और तीन किलोमीटर लम्बी एक सुरंग से होकर गुजरता है; दांये का रास्ता बंजार और तीर्थन की सुन्दर घाटी की और निकल जाता है.
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कुल्लू शहर से थोडा पहले ही घाटी में बसा भुंतर क़स्बा आता है, जहाँ हिमाचल का दूसरा हवाई अड्डा भी है. रास्ते भर मोटर-साइकिलों पर सवार सिख-हिन्दू श्रद्धालुओं के जत्थे मिलते आये थे. मूलतः पंजाब और हिमाचल के भी कुछेक जिलों से आने वाले ये यात्री मणिकर्ण गुरुद्वारा जा रहे हैं, जहाँ गंधक मिले गर्म पानी के चश्मे हैं जो बर्फ में भी खौलते रहते हैं. चावल को किसी पोटली में बांधके रस्सी से इसमें लटका दीजिये, कुछ ही देर बाद बिना चूल्हे का मजेदार भात तैयार. भुंतर के बाद उनका रास्ता अलग हो जाता है और कुल्लू-मनाली जाने वालों का अलग. मणिकर्ण के ही पास मलाना गाँव भी आता है, जो दुनियाभर में ‘मलाना क्रीम’ कहे जाने वाले गांजे और चरस के लिए विख्यात है. कसोल, पारवती घाटी और ऐसे तमाम जाने-अनजाने ठिकाने इस इलाके में हैं जो देश-दुनिया के प्रकृति प्रेमियों को यहाँ खीँच लाते हैं. कभी हिप्पियों का मुख्य केंद्र रहा कुल्लू जिला अब भी इस्रायल के अलावा अन्य देशों से आने वाले सैलानियों के जत्थों से पटा रहता है.
कुल्लू जिले में सिर्फ चार सीटें हैं, पिछले चुनाव में जिनमें से दो कांग्रेस ने जीती थीं, एक भाजपा ने और एक नयी बनी हिमाचल लोकहित पार्टी के महेश्वर सिंह ने. कभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे कुल्लू के राजा और विधायक महेश्वर सिंह ने पूर्व CM धूमल से मतभेद हो जाने पर यह पार्टी बनायी थी. कुल्लू के प्रधान देवता रघुनाथ जी के मंदिर के प्रमुख होने के चलते स्थानीय लोगों की मान्यता है कि उन्हें वोट न देने से देव-प्रकोप हो सकता है, शायद इसीलिए महेश्वर कभी कुल्लू विधानसभा से चुनाव नहीं हारे. धर्म और राजनीति का ये घालमेल CM राजा वीरभद्र सिंह को भी चुनाव जीतने में मदद करता है. बहरहाल, धूमल की नाराजगी के बावजूद अगस्त में महेश्वर सिंह की भाजपा में वापसी लगभग तय है, जिसमें JP नड्डा ने मुख्य भूमिका निभाई है. जहां इससे कुल्लू में भाजपा मजबूत होगी वहीँ धूमल कैंप कमज़ोर पड़ेगा.
समय की कमी के चलते लाहौल-स्पीती नहीं जा पा रहे हैं इसका मलाल है. बौद्ध धरोहर की प्रतीक ताबो, काजा और गोम्पाओं की कहानियां याद आ रही. मन को समझाते हैं कि इस बार न सही, जल्द ही फिर योजना बनायेंगे. अगले दिन धर्मशाला और हमीरपुर का लम्बा सफ़र तय करना है, इसलिए जल्दी सो जाते हैं और सुबह तड़के ही निकल पड़ते हैं.
क्रमशः