शिमला. बर्फबारी के चलते बंद हुए शिकारी माता मंदिर के कपाट आज से खुल गए हैं. देवी-देवताओं को धरती हिमाचल प्रदेश की संस्कृति, यहां का रहन-सहन और यहां के लोगों की सादगी आकर्षित करती है. हिमाचल के लोगों में देवी-देवताओं के प्रति विश्वास और आस्था बेहद गहरी है.
हिमाचल में अनेकों मंदिर बने हैं, जिनकी अपनी एक कहानी और मान्यता है. ऐसा ही एक धार्मिक स्थल मंडी जिले में भी है. जंजैहली से 18 किलोमीटर दूर शिकारी देवी मंदिर, जो 3359 मीटर की ऊंचाई पर बना है.
बर्फबारी के चलते बंद हुए मंदिर के कपाट खुल गए
स्थानीय प्रशासन ने नवंबर माह में बर्फबारी के चलते शिकारी माता मंदिर के कपाट बंद कर दिए थे, लेकिन स्थानीय थुनाग प्रशासन ने चैत्र नवरात्र शुरू होने से पहले माता शिकारी के कपाट आम जनमानस के लिए खोल दिए हैं.
बर्फबारी के बीच मनमोहक है माता शिकारी का सफर
शिकारी देवी मंदिर ट्रैक से भरपूर है. सैलानी दूर-दूर से यहां आते हैं. मंडी जिले का सर्वोच्च्य शिखर होने की वजह से मंडी का क्राउन भी कहा जाता है. शिकारी देवी मंदिर ट्रैक पर घने जंगल हैं जो सफर को और खूबसूरत बनाते हैं. वहीं, यहां आपको बर्फबारी भी देखने को मिलेगी.

सराज लोक निर्माण विभाग की मानें तो जब तक बर्फ पूरी तरह पिघल नहीं जाती, तब तक रायगढ़ गांव से शिकारी माता मंदिर तक का सफर बहुत अच्छा और मनमोहक रहेगा. श्रद्धालु माता के दर्शन करने जा सकते हैं.
मंदिर निर्माण के पीछे पौराणिक कथा
शिकारी शिखर की पहाड़ियों पर स्थित देवी का यह मंदिर आज भी छत से विहीन है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था. मान्यता के अनुसार मार्कंडेय ऋषि ने इस स्थान पर कई वर्ष तपस्या की थी और उनकी तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा अपने शक्ति रूप में स्थान पर स्थापित हुईं.
इसी स्थान पर अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी तपस्या की. पांडवों की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा प्रकट हुईं और पांडवों को युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया. उसी समय पांडवों ने मंदिर का निर्माण करवाया, लेकिन किसी कारण इस मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो सका और पांडव यहां पर मां की पत्थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद चले गए.