नई दिल्ली. किसी भी क्षेत्र या देश की औसत वार्षिक जल उपलब्धता काफी हद तक जल-मौसम विज्ञान और भूवैज्ञानिक कारणों पर निर्भर करती है और ऐसे जल संसाधन डेटा का मूल्यांकन बेसिन-वार तरीके से किया जाता है. देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता जनसंख्या पर निर्भर करती है और यह उपलब्धता जनसंख्या में वृद्धि के कारण कम हो रही है. इसके अलावा वर्षा की उच्च अस्थायी और स्थानिक विभिन्नता के कारण देश के कुछ जगहों को जल संकट का सामना भी करना पड़ सकता है.
भूजल उपलब्धता में आ रही कमी
वर्ष 2011 में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1545 घन मीटर थी. एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2021 और 2031 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता क्रमशः 1486 क्यूबिक मीटर और 1367 क्यूबिक मीटर आंकी गई है. 1700 क्यूबिक मीटर से कम की वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता जल संकट की स्थिति मानी जाती है.
कुछ क्षेत्रों में भूजल निकासी वार्षिक पुनः पूर्ति संसाधनों से कई गुना ज्यादा
भूजल एक पुनः पूर्ति योग्य संसाधन है जो समय-समय पर वर्षा और अन्य स्रोतों के माध्यम से रिचार्ज होता रहता है. कुछ क्षेत्रों में भूजल निकासी वार्षिक पुनः पूर्ति संसाधनों से कई गुना ज्यादा है. भूजल संसाधनों के अत्यधिक दोहन से भूमिगत जल में निरंतर कमी आ रही है. हालांकि यह एक प्रतिवर्ती प्रक्रिया है जिसको पानी के विवेकपूर्ण और समग्र प्रबंधन के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है.
देश के प्रमुख शहरों में जो उचित जल प्रबंधन उपायों को अपना रहे है उनमें 2030 तक भूजल की समाप्ति नहीं होगी, क्योंकि भूजल एक पुनःपूर्ति योग्य संसाधन है और समय-समय पर बारिश के माध्यम से रिचार्ज होता रहता है.
केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास
जल राज्य का विषय होने के कारण जल संसाधनों के संवर्धन, संरक्षण और कुशल प्रबंधन के लिए कदम प्राथमिक रूप से संबंधित राज्य सरकारों द्वारा उठाए जाते हैं. राज्य सरकारों के प्रयासों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार उन्हें विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है.