कुल्लू(अन्नी). अंतरराष्ट्रीय कुल्लू उत्सव में वीरवार को भव्य देव मिलन देख जनसैलाब भावुक हो उठा. हजारों लोगों के बीच आगे बढ़ते देवरथों और हारयानों का भव्य नजारा देखते ही बन रहा था. रघुनाथ जी के अस्थाई शिविर में भी देवी देवता शीश नवाने पहुंचे.
उत्सव में श्रद्धालु कतार में रघुनाथ जी से आशीर्वाद लेने के लिए खड़े रहे. दशहरा उत्सव के छठे दिन मुहल्ला मनाया जाता है. इस दिन देवी-देवता आपस में मिलते हैं. इस भव्य देव मिलन को देखने के लिए जगह-जगह से भारी भीड़ आयी. कड़े सुरक्षा पहरे में भीड़ के बीच देवी-देवताओं की डोली आगे बढ़ती रही.
दशहरा उत्सव में देवी देवताओं की रिश्तेदारी
दशहरा उत्सव के सातवें दिन लंका दहन होता है और रघुनाथ जी की भव्य रथ यात्रा भी निकलती है. दशहरा उत्सव में विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे देवी देवता जगह-जगह आपस में मिलते हुए देखे गए. पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि के बीच दिनभर यह दिव्य नजारा देखने को मिलाता है. कई देवी देवता मिलन के लिए दूसरे देवी देवताओं के अस्थाई शिविरों में जाते हैं.
दशहरा उत्सव में देवी देवता रिश्तेदारी भी निभाते हैं. सचाणी के देवता गर्गाचार्य की दलासणी गांव की देवी श्यामा काली रिश्ते में बहन लगती है. चौंग की देवी चौंगासन देवता बिजली महादेव की पत्नी हैं. इसी तरह देवी पटंती और मंगलेश्वर महादेव में भाई बहन का रिश्ता है. घटोत्कच अपनी माता देवी हिडिंबा से मिले. खोखण के देवता आदि ब्रह्मा और विष्णु अवतार अधिष्ठाता रघुनाथ जी के दरबार में हाजरी भरी. बिजली महादेव ने भी रघुनाथ जी के यहां हाजरी भरने के बाद अपने अस्थाई शिविर का रुख किया.
लक्ष्मण अवतार देवता बालू नाग रघुनाथ जी के अनुज हैं. देवता श्रृंगा ऋषि (ऋष्य श्रृंग) ने राजा दशरथ के घर में पुत्रेष्टि यज्ञ किया था. यज्ञ के बाद ही राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघन पैदा हुए. देवी देवताओं के लिए दशहरा रिश्तेदारी निभाने का भी एक बेहतर मौका होता है. पुरोहित कमल किशोर शर्मा, डा सुरत राम ठाकुर, डा रमेश ठाकुर ने कहा कि आज सभी देवी देवता एक दूसरे से मिले. अंतिम दिन लंका दहन के बाद सभी देवी देवता अपने अपने देवालय को लौटेंगे.
दशहरा उत्सव में हिडिंबा की अहम भूमिका
राजपरिवार की कुल देवी माता हिडिंबा का दशहरा उत्सव में अहम रोल रहता है. राज परिवार की तरफ से दशहरा उत्सव के लिए निमंत्रण भेजा जाता है. हिडिंबा माता के बिना कुल्लू दशहरा ही नहीं हो पाता है. कभी कोई घटना हो जाती है और माता नहीं आती है तो दशहरा उत्सव ही नहीं मनाया जाएगा.
दशहरा उत्सव के शुभारंभ से दशहरा उत्सव के समापन तक हिडिंबा माता की अहम भूमिका रहती है. कारदार बाते हैं कि कुल्लू में अष्टांग बलि जो दी जाती है वह भी माता के लिए ही दी जाती है. जिसके बाद माता अपने घर को प्रस्थान करती है. अष्टांग बलि लेने के उपरांत एक भी क्षण माता कुल्लू में नहीं ठहरती है.