नई दिल्ली. आधार की वैधता को तय करने से पहले अब यह निर्धारित किया जाएगा कि ‘निजता का अधिकार’ व्यक्ति का मौलिक अधिकार है या नहीं? आधार की वैधता को तय करने के लिए गठित की गई 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने, इसे नौ सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया था. उच्चतम न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ को अब यह विचार करना है कि ‘निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं’?
केन्द्र सरकार, निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं मान रही है. जबकि याचिकाकर्ताओं ने निजता का हनन होने की वजह से आधार योजना की वैधता पर सवाल उठाया है. दरअसल, आधार बनाने के समय बायोमैट्रिक विवरण जैसे आंख की पुतली और हाथों के अंगुलियों के निशान लिये जाते हैं. याचिकाकर्ता इसे निजता के अधिकार का हनन बता रहे हैं.
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार की तरफ से दलील देते हुए पूर्व में हुए दो फैसले का संदर्भ दिया. उन्होनें कहा कि पूर्व में एमपी शर्मा मामले में 8 सदस्यीय पीठ और खड्ग सिंह मामले पर 6 सदस्यीय पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना है इसलिए 5 सदस्यीय पीठ इस पर विचार नहीं कर सकती है. इसके बाद इस मामले को 9 सदस्यीय पीठ के पास विचार करने के लिए भेजा गया है. इस पर दोनों पक्षों ने सहमति व्यक्त की है.
अब नौ सदस्यीय पीठ यह विचार करेगी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, इसके बाद पूर्व में बनी पांच सदस्यों वाली संवैधानिक पीठ, आधार की वैधता पर विचार करेगी. याचिकाकर्ताओं की तरफ के वकील श्याम दीवान और गोपाल सुब्रमण्यम ने अटार्नी जनरल के कथन का समर्थन किया. उनकी दलील थी कि गोविन्द बनाम मध्य प्रदेश, राजगोपाल बनाम तमिलनाडु जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ही छोटी बेंचों ने निजता को मौलिक अधिकार माना है.
चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता में बैठी पांच जजों की पीठ ने इस सवाल को बेहद अहम माना. पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ ने निजता के अधिकार को संविधान का हिस्सा नहीं माना. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ही छोटी पीठ ने इसे मौलिक अधिकार कहा है. ऐसे में पहले इस सवाल का निपटारा होना ज़रूरी है.
बुधवार को 9 जजों वाली पीठ निजता के अधिकार पर सुनवाई करेगी. यदि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाता है तो ये देखा जाएगा कि आधार योजना, निजता के अधिकार का हनन करती है या नहीं.