मंडी. सर्दियों के आते ही हिमाचल के गांवों में आगजनी की घटनाएं तेज हो जाती हैं. ऐसा लगता है कि पहाड़ के पुराने समय के बनें काठकुणी घर अब सर्दियों के लिए खतरनाक होने लगे हैं. मंडी जिला में दो माह के भीतर दूसरा अग्निकांड हो गया. इससे पूर्व दिसंबर माह में सराज घाटी के डाहर में पूरा गांव जलकर खाक हो गया था. और अब उसी सराजघाटी के दूरदराज के कलवाड़ा गांव में एक पंद्रह कमरों का घर जल गया और चार परिवार बेघर हो गए. यह तो गनीमत रही कि लोगों ने अपने दम पर आग को पूरे गांव में फैलने से रोक दिया.
बारूद के ढेर पर सैंकड़ों गांव
ऐसा लगता है कि मानों पहाड़ के सैंकड़ों गांव बारूद के ढेर पर बैठे हों. ऐसा नहीं है कि पहाड़ों में सर्दियों के अलावा अग्रिकांड की घटनाएं नहीं होती. मगर सर्दियों के मौसम में इनमें इजाफा हो जाता है. जिसके चलते लोगों को कड़ाके की ठंड में या तो खुले आसमान के नीचे तंबु लगाकर रातें गुजारनी पड़ती है या फिर अपने नाते रिश्तेदारों के घरों में डेरा डालना पड़ता है। मंडी जिला के सराज, करसोग, चौहारघाटी के अलावा कुल्लू जिला के अनेक गांवों में साल दर साल इस तरह के भीषण अग्रिकांड पेश आते हैं.
लकड़ी के घरों में रखा जाता है घास और लकड़ी
पहाड़ के ठंडे मौसम से निपटने केलिए लकड़ी के काठकुणी शैली में मकान बनाए जाते हैं. जो बर्फबारी के दौरान गर्म रहते हैं. वहीं, पर ये मकान भूकंप रोधी भी होते हैं. मगर इनके निर्माण में लकड़ी का बेतहाशा उपयोग किया जाता है. काठकुणी मकान आग से सुरक्षित नहीं होते. हिमाचल के कई परंपरागत गांवों में लकड़ी के काठकुणी शैली के मकान बने हैं. ये गांव सड़क से दूर पहाड़ की टेकरी पर बीस से पचास तक के समूहों में बसे होते हैं. इन्हीं गांवों में कुछ घरों में सर्दियों के लिए लकड़ी और घास स्टोर करके रखा जाता है. जबकि इन घरों में निचली मंजिल में पशु बांधे जाते हैं और ऊपर की मंजिल पर लोग स्वयं रहते हैं.

पशुओं के साथ ही चारे का घास और जलावन लकड़ी और चीड़ एवं रइ के पेड़ों की पत्तियां भी रखी जाती हैं. जिससे बर्फबारी के दौरान घास और लकड़ी लाने के लिए दूर न जाना पड़े. मगर कभी-कभी यह खतरनाक साबित होता है. आग की एक छोटी-सी चिंगारी ऐसी भड़कती है कि पूरे का पूरा गांव स्वाहा हो जाता है. गांव के ये घर एक दूसरे से सटे होने की वजह से आग लगने की घटना के दौरान एक साथ ही लपटों से घिर जाते हैं. जिससे भीषण अग्रिकांड हो जाता है. मंडी जिले की सराजघाटी का कयोली गांव कुछ वर्ष पूर्व इसी तरह जलकर खाक हो गया था। इसके बावजूद भी लोग अपनी जीवन शैली में बदलाव नहीं कर रहें हैं. जिससे हर साल आगजनी की घटनाओं में लोगों को अपनी लाखों की संपति से हाथ धोना पड़ता है.