कुल्लू. होली आने में भले ही अभी लगभग डेढ़ महीने का वक्त है, मगर कुल्लू में पारंपरिक मान्यताओं के चलते बसंत पंचमी के दिन ही होली की शुरुआत हो गई. ढोल-नगाड़ों के साथ रघुनाथ जी की रथ यात्रा में सैंकड़ों श्रद्धालू शामिल हुए. चालीस दिनों तक चलने वाली इस पूजा-पाठ में कुल्लू राजघराने की अगुवाई में स्थानीय महंत परिवार के लोग विशेष रूप से भाग लेते हैं. होली के दिन देश के अन्य भागों की तरह होलिका दहन के बाद इस त्यौहार का समापन हो जाता है.
सन 1660 से कुल्लू में इस त्यौहार को मनाया जाता है
स्थानीय परंपरा के बीच कुल्लू में बसंत पंचमी के त्यौहार को बनवास के समय राम और भरत के मिलन से भी जोड़ा गया है. सन 1660 से कुल्लू में इस त्यौहार को मनाया जा रहा है. इस बार भी राम-भरत के मिलाप और हनुमान जी की राम भक्ती सम्बन्धी प्रसंग को बड़े ही रोचक ढंग से लोगों के सामने पेश किया गया.
शरीर से सिंदूर का टीका लगाना भी शुभ मानते हैं
इस त्यौहार में भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा दशहरे के त्यौहार की तरह ही निकाली जाती है. सिंदूर से रंगे हनुमान जी इस त्यौहार के मुख्य आकर्षण बनते हैं. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार इस त्यौहार के अवसर पर हनुमान को स्पर्श करना बेहद शुभ माना जाता है. लोग हनुमान को छू कर उनके शरीर से सिंदूर का टीका लगाना भी शुभ मानते हैं.