कुल्लू. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लू दशहरा जिसे विजय दशमी भी कहा जाता है, 30 सितंबर से छह अक्टूबर तक धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाएगा. कुल्लू दशहरे की यह विशेषता है कि यह दशहरा के दिन प्रारंभ होता है और सात दिनों तक उत्सव मनाया जाता है.
कुल्लू दशहरा भारत का एकमात्र ऐसा उत्सव है जिसमें दशहरा के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते. सातवें दिन, लंका बेकर में परंपरानुसार बलि के साथ ही तीन झाड़ियों को जलाया जाता है. जो रावण, कुंभकरण और मेघनाद के प्रतीक माने जाते हैं.
जब भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति अयोध्या से पौणीहारी बाबा तथा दामोदर दास ने कुल्लू पहुंचाई थी और राजा जगत सिंह का कुष्ठ रोग मूर्ति के चरणामृत को पीने से ठीक हो गया था तब राजा जगत सिंह ने कुल्लू में प्रचलित शैव मत के स्थान पर वैष्णव मत की स्थापना की तब से निरंतर कुल्लू दशहरा का आयोजन होता रहा.
आरंभ में रघुनाथ जी की मूर्ति मणिकर्ण लाई गई वहां पर दशहरा होता रहा जो आज भी निरंतर है. मणिकर्ण के बाद मूर्ति नगर ले जाई गयी और वहां आज भी दशहरा होता है. उसके बाद जब कुल्लू राज्य की राजधानी जब सुल्तानपुर में स्थापित की गई तब से दशहरा ढालपुर में मनाया गया. जिसे आज अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है.
कुल्लू दशहरा में रघुनाथ जी की रथ यात्रा होती है जिसमें रघुनाथ जी की मूर्ति के साथ रथ में अयोध्या से लाए पुरोहित भी बैठते हैं. रथ को एक निश्चित स्थान पर स्थापित करके दशहरा उत्सव का शुभारंभ किया जाता है. इसमें गिनीज बुक ऑफ वल्ड रिकॉर्ड में शामिल अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लवी नाटी के साथ साथ लालड़ी जैसे स्थानीय लोक नृत्य भी किए जाते हैं.
कुल्लू दशहरा में प्रारंभ में 365 मुआफीदार देवी देवता आते थे. परंतु वर्तमान में 250 के लगभग देवी देवता अपने कारकूनोंख् बजंतरियों के साथ नाटी डालते हुए आते हैं. कुल्लू में श्री राम द्वारा स्वयं अश्वमेध यज्ञ के लिए बनवाई गई अपनी व अपनी अर्धांगिनी की मूर्ति हैं जबकि अयोध्या में राम लला (बाल रूप) की मूर्ति है.
कुल्लू में श्री राम की जो मूर्ति है वह इसरो के मुताबिक साढ़े सत्रह लाख वर्ष पुरानी मानी गई है. इसकी सुरक्षा का दायित्व आज भी राजा जगत सिंह के उत्तराधिकारियों पर है. इस मूर्ति और आए हुए अन्य देवी देवताओं के रथों की सुरक्षा के लिए राजा की जलेब राजा जगत सिंह से लेकर आज तक अनवरत है. मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में भी इस दशहरे की सुरक्षा का दायित्व राज परिवार का ही रहा है.