कुल्लू. देवभूमि कुल्लू नए आयोजनों की तैयारी में जोरशोर से लग गई है. धार्मिक आयोजनों के लिए मशहूर इस क्षेत्र में इस बार अपने आराध्य देवी-देवताओं के लिए नए रथ बनाने का काम चल रहा है. रथों के निर्माण में धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.
44 वर्ष बाद नए रथ पर विराजेंगे बंजार के गढ़पति मूल शेषनाग
बंजार घाटी के देवता गढ़पति मूल शेषनाग जिभी 44 वर्षों बाद नए रथ पर विराजेंगे. नए रथ का निर्माण कार्य छह दिसंबर से शुरू होगा. देवता के कारदार सत्यदेव नेगी और पुजारी गोबिंद्र शर्मा ने बताया कि 29 मार्गशीर्ष तदनुसार 14 दिसंबर को नए देवरथ की प्रतिष्ठा की जाएगी. 14 और 15 दिसंबर को जिभी में ही कुल्लवी धाम का आयोजन किया जाएगा.
बंजार घाटी से आठ किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल की ओट में बसा जिभी गांव देवता गढ़पती मूल शेषनाग के गृहक्षेत्र से भी प्रसिद्ध है. बंजार क्षेत्र में गढ़पति मूल शेषनाग का अपना एक विशेष स्थान है. जिभी के चेंऊंट में देवता की मंदिर कोठी है. देवता की करोड़ों की वनसंपदा के साथ दर्जनों बीघा जमीन है.

अंगाह पेड़ की लकड़ी से बनता है रथ
इससे पहले 21 दिसंबर 1973 में रथ का निर्माण व प्रतिष्ठा का कार्य किया गया था. नए देव रथ के निर्माण को लेकर कोठी खाड़ागाढ़ और तिलोकपुर के सैकड़ों हारियानों में काफी उत्साह है. देवता के श्रीकारदार सत्यदेव नेगी, काईथ भादर सिंह, भंडारी लोभू राम, मेहता प्रताप ठाकुर, देवराज नेगी, प्रेम दास, ठाकुर पुजारी गोबिंद्र शर्मा, दरोगा प्यारे, चंद चेतराम और खूब राम का कहना है कि देवता रथ निर्माण कार्य के लिए लकड़ी बाहर से नहीं लाई जाती है. देवता परिसर चेंउट या फिर मूल शेषनाग स्थान जिभी में से ही अंगाह नामक लकड़ी का पेड़ देव आशीर्वाद से स्वयं बड़ा होता है, उसे रथ निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है. नया देवरथ 8 दिनों में कुशल कारीगरों द्वारा तैयार किया जाएगा.
17 साल बाद बना त्रिपुरा सुंदरी देवी का नया रथ
उझी घाटी के नग्गर की अधिष्ठाती देवी त्रिपुरा सुंदरी का नया देवरथ एक सप्ताह में बन कर तैयार हो गया है. देवरथ को 17 साल बाद दोबारा बनाया गया है. इस रथ की खास बात यह है कि देवरथ को एक ही पेड़ की लकड़ी से तैयार किया गया है. माता का मन्दिर चारों तरफ से घने देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है और पूरा मन्दिर काष्ठकुनी शैली में बना हुआ है. नए रथ की विधि विधान से पूजा अर्चना के लिए माता अपने हरियानों के साथ पर्यटन नगरी मनाली में स्थित वशिष्ठ गांव में शाही स्नान के लिए रवाना हो गई.

देवी त्रिपुरा सुन्दरी के रथ को बनाने की प्रक्रिया एक वर्ष पूर्व से ही शुरू की गई थी. जो वृक्ष माता के रथ को बनाने के लिए काटा गया था, उसे पूरी देव रिती के अनुसार ही मन्दिर लाया जाता है. माता का रथ बनाने वाली लकड़ी को मंदिर पहुंचने से पहले कहीं भी जमीन पर नहीं रखा जाता. मंदिर पहुंचने के बाद लकड़ी को एक साल तक वहां की मिट्टी में ढंककर रख दिया जाता है. अगर इस दौरान लकड़ी खराब हो गई तो इसे शुभ संकेत नहीं माना जाता.
एक सप्ताह में बनकर तैयार होता है रथ
खास बात यह है कि माता के रथ को एक सप्ताह के भीतर में किसी में स्थिति में पूर्ण करना होता है. जो कारीगर माता के रथ को बनाने के कार्य में लगे होते है वो पूरे सप्ताह तक सिर्फ एक समय ही खाना खाते हैं. इस पूरे सप्ताह उन्हें अपने घर जाने की भी मनाही होती है और नाही वह अपने नाखून और बाल काट सकते हैं. माता के कारदार जोगिन्दर आचार्य ने बताया की यह रथ आज से 17 साल पहले बना था और 17 साल पुन: बनाया जा रहा है.