देहरा (कांगड़ा). आज़ादी से पहले के दौर में अंडमान को काला पानी कहा जाता था, क्योंकि इस इलाके में जेल काटने गए कैदियों को सभ्यता से दूर, एक निर्जन टापू पर रहना होता था. देहरा उपमंडल के अंतर्गत धार पंचायत के धार, चतरा, हाली बस्ती, लुनसु आदि गांवों के लोग अपने इलाके को ‘काला पानी’ के नाम से पुकारते हैं,क्योंकि इन गाँवों तक न तो कोई सड़क है और न ही दूसरी नागरिक सुविधायें. सभ्यता से कटे इन गावों हैं कि उचित मूल्य की दुकान से राशन लेने के लिए उन्हें 14 किलोमीटर चलना पड़ता है. इन्हीं कारणों के चलते इन गांवों के 40 से 50 घर खाली हो चुके हैं.
एक दशक में लगभग डेढ़ दर्जन लोग अपनी जान गवां चुके हैं
धार गांव में छोटी सी दुकान करने बाले बुजुर्ग रोशन लाल का कहना है कि जब यहां कोई बीमार हो जाये तो उसे चारपाई या पालकी में उठाकर 12 किलोमीटर दूर पी.एच.सी. मसरूर या हरिपुर लेकर जाना पड़ता है और बेहतर इलाज के लिए नगरोटा सूरियां या कांगड़ा टी.एम.सी. जाना पड़ता है .गांव के ही मदन लाल ने बताया कि समय पर स्वास्थ्य सुविधा न मिलने से पिछले एक दशक में लगभग डेढ़ दर्जन लोग अपनी जान गवां चुके हैं. उनके भाई कमल सिंह की मौत भी समय से पहले सिर्फ इसलिए हुई की समय पर चिकित्सा उपलब्ध न हो सकी.
तो उजड़ जायेगा गाँव
भूतपूर्व सूबेदार मेजर मोहिंदर सिंह का कहना है कि यहां जाट समुदाय के 15 -16 परिवार रहते थे पर शिक्षा, स्वास्थ्य ओर सड़क की सुविधा न होने से सभी लोग कांगड़ा ,गगल ,चंडीगढ वगैरह जगहों पर बस गए, जिससे जाट बस्ती के घर अब खण्डर बन चुके हैं. मोहिंदर सिंह कहते हैं अगर यही हाल रहा तो पूरा गाँव ही कुछ दिनों में उजड़ जायेगा.
गांव मैं नही दे रहा कोई अपनी बेटी
70 वर्षिय सीताराम का कहना है कि उनके धार गांव के युवकों के साथ आसपास के गाँव वाले भी अपनी बेटियों की शादी नहीं करवाना चाहते. स्थानीय निवासी मदन लाल और रोशन लाल का कहना है कि बेहतर भविष्य और नौकरी की चाह में युवा पीढ़ी गांव छोड़ कर विकसित इलाकों में जाती है और फिर वाही बस जाती है. वह कहते हैं कि बच्चे तो बुजुर्गों को अपने साथ ले जाना चाहते हैं पर बुजुर्ग अपनी जन्मभूमि छोड़ना नहीं चाहते.
जंगल से गुजर कर जाना पड़ता है शिक्षा के लिए
गांव की ही छात्रा नीति चौधरी ने बताया कि वह ठाकुर कॉलेज से बी एड कर रही हैं और सड़क न होने के कारण उन्हें रोजाना बस लेने के लिए अपने गांव से 12 किलोमीटर दूर जंगल के रास्ते गुलेर जाना पड़ता है. सड़क न होने से लड़के लड़कियां पढ़ने के लिए जंगल के रास्ते से होकर हरिपुर कॉलेज जाते हैं और सर्दियों के समय शाम जल्दी होने से जंगल में अपराध या दुर्घटना का डर बना रहता है.
रेलवे ही है एकमात्र आने जाने का विकल्प
ग्राम प्रधान किशोरी लाल ने बताया कि उनके गांव में आने जाने का एक मात्र साधन रेलवे ही है. उन्होंने बताया कि सामान्यतः 2 से 3 ट्रेनें आती हैं पर बारिश होने पर यह भी बंद हो जाती हैं. गाँव की शांति देवी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से प्रार्थना की कि वह एक दिन के लिए उनके गांव में आकर रहें, ताकि उन्हें यहाँ के लोगों की दिक्कतों का अंदाजा हो सके.
कभी शाम कभी अगले दिन आता है अखबार
गांव के उपप्रधान नितिन ठाकुर ने बताया कि सड़क न होने के कारण यहाँ अखबार भी रेलवे से आता है और वह भी कभी शाम को मिलता है तो कभी अगले दिन.
देहरा के निर्दलीय विधायक श्री होशियार सिंह ने माना कि इन चार पांच गांवों के लोगों को बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा है और भरोसा दिलाया कि मैं शीघ्र ही इनकी समस्याओं को विधानसभा में लेकर जाऊंगा ताकि इनका समाधान किया जा सके.