शिमला. स्कूल में आने वाले नये बच्चे के लिए एक अकेला वर्ण व लैटर ही पूरा पाठ होता है. बच्चे को पढ़ाते वक्त मेरे मन में हमेशा यह बात होती है. मगर अब स्कूलों में इसके उलट हो रहा है. शिक्षक पहली ही कक्षा में बच्चे को ‘ए टू जैड’ होम वर्क दे देते हैं. जिससे उनकी लिखने की बनावट भी नहीं बन पाती. इसका ही नतीजा है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे, छठी तो क्या आठवीं कक्षा में पहुंच कर भी ‘कर्सिव राइटिंग’ कर पाते यानी हिंदी या अंग्रेजी भाषा प्रवाह में लिखना नहीं सीख पाते. न ही वह अपना लिखा हुआ पढ़ पाते है और न ही उन्हे स्पेलिंग याद रहती है. यह अनुभव है, प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) विरेंद्र कुमार का. वह इस समय राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में बतौर टीचर ट्रेनिंग इंचार्ज अपनी सेवाएं दे रहे है.
हाथ पकड़कर लिखना सिखाते हैं
यहां रहते भी उन्होंने अध्यापन से अपना पल्ला नहीं झाड़ा बल्कि बच्चों की लेखनी की बनावट व पढ़ाई में सुधार करने के लिए शिमला के दो स्कूल गोद ले लिये हैं. प्राथमिक पाठशाला लालपानी व मैफील्ड के बच्चों को वह इन दिनों हिंदी व अंग्रेजी में निपुण बना रहे है. राज्य परियोजना निदेशालय में अपना कार्यालय का कामकाज निपटाने के अतिरिक्त वह एक घंटे का समय इन स्कूलों में बिताते है. बच्चों का हाथ पकड़ कर वह पहली से पांचवी कक्षा तक के बच्चों को लिखना सिखा रहे हैं.
वीरेंद्र कुमार का कहना है कि बतौर ट्रेनिंग इंचार्ज कार्यशाला लगाते हुए उन्होने जाना कि छठी कक्षा में आने के बाद भी बच्चों को लिखना नहीं आता है. वे हर वर्ण को अलग-अलग लिखते हैं. वे किताब में जैसा लिखा है वैसा ही लिखना सीखते हैं. इससे आने वाले समय में छात्रों को सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि न तो उनकी लिखने में स्पीड होती है और न ही सुलेख सुंदर होता है. पढऩे वाले को तो दिक्कत आती ही है. उन्होने कई छात्रों के पेपर मंगवा कर भी देखे जिनमें यही कमी सामने आई. शिक्षक आसानी से नहीं मान रहे थे कि कर्सिव राइटिंग सिखाना आसान है. इसलिए खुद ही स्कूल गोद लेकर उन्होने यह काम करना शुरू कर दिया. उनके मुताबिक, आने वाले समय में हिमाचल में बच्चों की हैंड राइटिंग बड़ी विपत्ति होगी.
झुग्गी बस्तियों में फैलाया शिक्षा का उजियाला
17 साल तक प्राइमरी टीचर का अनुभव रखने वाले विरेंद्र कुमार साल 2015 के राज्य स्तरीय पुरस्कृत अध्यापक भी है। जो खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए जाने जाते है। प्रदेश में एक अध्यापक द्वारा अपने स्तर पर मोहरी स्कूल में स्मार्ट क्लास तैयार करने का तमगा भी इन पर लगा है। यही नहीं शिमला शोघी रेलवे ट्रैक पर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को स्कूल का रास्ता बताकर उनके जीवन में भी शिक्षा का उजियाला कर चुके है। इनके द्वारा प्रारंभिक शिक्षण एवं अधिगम सामग्री तथा गतिविधि आधारित शिक्षण व बालमन जैसी किताबें लिखी गई है। जिससे हिमाचल के अतिरिक्त बाहरी राज्यों के शिक्षकों को भी गतिविधि आधारित शिक्षण के टिप्स मिल रहे है। शिक्षा के क्षेत्र में नई सोच व तकनीक से पढ़ाने के लिए पहचान बनने के बाद ही इन्हें सर्व शिक्षा अभियान व राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में नई जिम्मेदारी मिली है। मगर यहां रहते हुए भी इन्होंने पढ़ाना नहीं छोड़ा बल्कि दो स्कूल गोद ले लिए है।
स्पेलिंग, पिक्चर की तरह रखते हैं याद
सरकारी स्कूलों के छात्र स्पेलिंग को एक पिक्चर की तरह याद रख रहे है। विरेंद्र कुमार का कहना है कि शब्द का पिक्चर की तरह याद रखने से रिकॉल कर लिख तो लेते है लेकिन न उसका अर्थात पता होता है। न ही स्पेलिंग याद रहते है, जबकि लेखनी में बनावट तो बनती ही नहीं। बच्चों को शब्द जोड़ता व स्वतंत्र लेख लिखना आना चाहिए। जिसे इन दो स्कूलों के बच्चों का करवाया जा रहा है। पूर्ण विश्वास है कि दो महीने में लालपानी व मैफील्ड में पढऩे वाले 143 छात्र इसमें निपुण होंगे।
दिसंबर महीने में लगेगी प्रदर्शनी
गोद लिए गए जिन दो स्कूलों में लेखनी व वर्तनी का ज्ञान करवाया जा रहा है. तीन महीने में इन छात्रों द्वारा लिखे लेख की प्रदर्शन लगाई जाएगी. विरेंद्र कुमार राज्य परियोजना निदेशक से अनुमति लेने के बाद इन स्कूलों में जाते है. एक-एक दिन छोड़कर दोनों स्कूलों में एक-एक घंटे की क्लास लेते हैं. 2 से 3 बजे तक बच्चों को हिंदी व अंग्रेजी पढ़ाया जाता है. हालांकि विरेंद निदेशालय में भी अपना काम पूर्ण कर रहे, इस एक घंटे से यदि काम में कोई कमी रह जाए तो शाम छह कार्यालय में ही बजा रहे है.
विरेंद्र कुमार शिमला जिला के सुन्नी क्षेत्र के संदोआ के रहने वाले है. इनका परिवार के अधिकांश सदस्य शिक्षक ही है. इनकी पत्नी भी टीजीटी मेडिकल है. पिता भी शिक्षक सेवानिवृत है और बड़े भाई भी शिक्षक की नौकरी छोड़ चुके है. जबकि बहन भी अध्यापिका ही है.