कुल्लू. हिमाचल का नाम देवभूमि यहां की प्राकृतिक सुंदरता के कारण दिया गया है. हालांकि शाब्दिक अर्थों में भी इसे देवभूमि कहना गलत नहीं होगा. कारण कि यहां ढेरों मंदिर और तीर्थस्थल हैं जिनके पीछे तमाम पौराणिक मान्यताएं और जनश्रुतियां जुड़ी हुई हैं.
मनाली यूं तो घूमने-फिरने वालों की पसंदीदा जगह है. यहां की वादियां किसी का भी मोह लेते हैं लेकिन मनाली में एक धार्मिक जगह ऐसी है, जहां बर्फीली ठण्ड में भी पानी उबलता रहता है. इस जगह का नाम है मणिकर्ण.
शेषनाग की फुंकार से उबलता है पानी का सोता
मणिकर्ण के उबलते पानी के सोते के पीछे भी एक पुरानी कहानी है. कहते हैं कि मणिकर्ण में भगवान शिव और माता पार्वती ने 11 हजार वर्षों तक तपस्या की थी. मां पार्वती जब जल-क्रीड़ा कर रही थीं, तब उनके कानों में पहनी हुई एक दुर्लभ मणि पानी में गिर गई थी. भगवान शिव ने अपने गणों को इस मणि को ढूंढने को कहा लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी मणि नहीं मिली. भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया, इससे एक शक्ति पैदा हुई. इसका नाम नैनादेवी पड़ा.
नैना देवी ने बताया कि दुर्लभ मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास है. सभी देवता शेषनाग के पास गए और मणि मांगने लगे. देवताओं के कहने पर शेषनाग ने दूसरी मणियों के साथ इस विशेष मणि को भी वापस कर दी. लेकिन इससे वह नाराज हुए और जोर की फुंकार मारी, जिससे इस जगह पर गर्म जल की धारा फूट पड़ी. तब से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ गया.
मणिकर्ण सहित गुरुनानक देव गुरुद्वारा की कहानी
हिमाचल के मणिकर्ण का यह गुरुद्वारा बहुत ही प्रख्यात स्थल है. ज्ञानी ज्ञान सिंह लिखित ‘त्वरीक गुरु खालसा’ में यह वर्णन है कि मणिकर्ण के कल्याण के लिए गुरुनानक देव अपने 5 चेलों संग यहां आये थे. गुरुनानक ने अपने एक चेले “भाई मर्दाना” को लंगर बनाने के लिए कुछ दाल और आटा मांग कर लाने के लिए कहा. फिर गुरुनानक ने भाई मर्दाने को जहां वो बैठे थे, वहां से कोई भी पत्थर उठाने के लिए कहा. जब उन्होंने पत्थर उठाया तो वही से गर्म पानी का स्रोत बहना शुरू हो गया. यह स्रोत अब भी कायम है और इसके गर्म पानी का इस्तमाल लंगर बनाने में होता है. कई श्रद्धालु इस पानी को पीते और इसमें डुबकी लगाते हैं. कहते है के यहां डुबकी लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है.