नई दिल्ली. रसगुल्ला मिठाई के अधिकार पर बंगाल और उड़ीसा राज्य के बीच चली लंबी लड़ाई के बाद अब ताजा मामला एक मुर्गे को लेकर आ गया है. जहां पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच ‘कड़कनाथ’ को अपना बताने के नाम पर बहस छिड़ गई है. देश-दुनिया में अपने मांस और अंडे के लिए प्रसिद्ध कड़कनाथ मुर्गे पर भागौलिक संकेत यानि जियोग्राफिकल इंडीकेशन को लेकर दोनों राज्य अपना-अपना दावा पेश कर रहे हैं.
कड़कनाथ मुर्गा मूलरूप से मध्यप्रदेश के झाबुआ और धार जिले में पाई जाने वाली मुर्गे की अनोखी प्रजाति है. यहां के आदिवासियों और जनजातियों में यह बहुत लोकप्रिय है. यह मुर्गा ऊँचा पूरा, काले रंग, काले पंखों और काली टांगों वाला होता है. इसे झाबुआ का ‘गर्व’ और ‘काला सोना’ भी कहा जाता है इसलिए मध्यप्रदेश इसपर जीआई टैग हासिल करने का अपना स्वभाविक दावा जता रहा है. लेकिन ‘कड़कनाथ मुर्गा’ मध्यप्रदेश से ज्यादा छत्तीसगढ़ के दंतेवोड़ा में भी पाया जाता है इसलिए छत्तीसगढ़ भी इसपर अपना हक जता रहा है. ऐसे में इसको लेकर दोनों राज्यों के बीच दिलचस्प लड़ाई शरू हो गई है.
कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है :
कड़कनाथ मुर्गी का एक अंडा 50 रपए तक में बिकता है. मुर्गी और मुर्गे की कीमत भी बॉयलर के मुकाबले करीब दोगुनी है. यह मुर्गा दरअसल अपने स्वाद और सेहतमंद गुणों के लिए मशहूर है. कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है. शोध के अनुसार, इसके मीट में सफेद चिकन के मुकाबले कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है और अमीनो एसिड का स्तर ज्यादा होता है.
स्थानीय भाषा में ‘ कड़कनाथ ‘ को कालीमासी भी कहते हैं क्योंकि इसका मांस, चोंच, जुबान, टांगे, चमड़ी आदि सब कुछ काला होता है. यह प्रोटीनयुक्त होता है और इसमें वसा नाममात्र रहता है. कहते हैं कि दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ बेहतरीन दवा है इसके अलावा कड़कनाथ को सेक्स वर्धक भी माना जाता है.
क्या होता है जीआई टैग :
बौद्धिक सम्पदा कार्यालय भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाइन एंड ट्रेड मार्क के उप नियंत्रक एन.के. मोहंती ने बताया ” विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देश होने के नाते भारत ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट 1999 को 15 सितंबर 2003 से लागू किया है। इसका मकसद मूल उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिष्ठा को बनाए रखना है, इसके चलते इन्हें वैश्विक बाजारों में भी बढ़त मिलती है। ”
उन्होंने बताया कि जिस तरह बौद्धिक संपदा अधिकारों में कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क को शामिल किया जाता है, जो होल्डर्स या निर्माताओं के अधिकार सुरक्षित रखते हैं, उसी तरह जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग होता है जिसके तहत ये माना जाता है कि संबंधित उत्पाद उस जगह की ही पैदाइश है और उस खास भागोलिख क्षेत्र में बनाई या उगाई जाती है.
जीआई टैग को डब्ल्यूटीओ से संरक्षण मिला है :
यहां के उप नियंत्रक संजय भट्टाचार्य ने बताया कि जीआई टैग को कृषि, प्राकृतिक और मानव निर्मित चीजों के लिए जारी किया जाता है. इसके लिए इनके अपने भौगोलिक मूल से संबंधित कोई विशेषता, गुणवत्ता, ख्याति के सबूत पेश करने होते हैं. उन्होंने बताया कि किसी जीआई का पंजीकरण इसके पंजीकृत मालिक और अधिकृत प्रयोगकर्ता को जीआई के इस्तेमाल का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. गैर-अधिकृत व्यक्ति जीआई टैग का इस्तेमाल नहीं कर सकता. जीआई टैग के साथ बेचे जाने वाले उत्पादों को ज्यादा कीमत का लाभ भी मिलता है.जीआई टैग को डब्ल्यूटीओ से भी संरक्षण मिलता है.
पिछले साल भारतीय पेटेंट कार्यालय ने जिन उत्पादों को जीआई टैग दिया है उसमें आंध्रप्रदेश का प्रसिद्ध बंगनपल्ले आम और पश्चिम बंगाल का तुलापंजी चावल भी है. देश में मिठाइयों में सबसे ज्यादा जाने जाने वाला लड्डू पर आंध्र प्रदेश को जीआई टैग हासिल है. लड्डू के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले पेड़े पर उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दोनों को अलग-अलग जीआई टैग हासिल है.
उत्तर प्रदेश के मथुरा की तरह कर्नाटक के धारवाड़ क्षेत्र में बनने वाले पेड़ें को भी जीआई टैग मिला हुआ है. माना जाता है कि 19वीं शताब्दी के दौरान जब उत्तर प्रदेश में प्लेग फैला था उस वक्त उन्नाव से एक परिवार कर्नाटक के धारवाड़ आया इस परिवार ने धारवाड़ में पेड़ा बनाना शुरू किया जो धारावाड़ के पेड़े के नाम से मशहूर हुआ.
मिठाइयों के साथ ही अमेरिका और खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा डिमांड में रहने वाला मध्य प्रदेश के रतलामी सेव नमकीन का मध्य प्रदेश के पास जीआई टैग है.
भारत में घर-घर खाई जाने वाली नमकीन में बीकानेरी भुजिया को राजस्थान की पैदाइश माना जाता है. इसका जीआई टैग राजस्थान को मिला हुआ है. बासमती चालव के लिए इस साल उत्तर भारत के सात बासमती चावल उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को जीआई टैग मिला है.