मंडी. जिले की द्रंग और गुम्मा की नमक खानों का इतिहास जितना पुराना है, उससे भी कहीं पुराना है, ऐतिहासिक नगरोटा गांव का इतिहास है. मंडी शहर के दो मशहूर स्थल चौहटा और सेरी इस गांव के चौराहों के नाम भी हैं. यह गांव मंडी शहर के बसने से पहले का बसा हुआ है.
इस गांव ने रियासतकालीन उस दौर को देखा है, जब मंडी रियासत की इन दो नमक की खानों से नमक ले जाया जाता था. पंजाब से ऊंटों के काफिले, तिब्बत, लेह-लद्दाख, किन्नौर, रामपुर और अन्य पहाड़ी रियासतों से लोग घोड़े खच्चरों पर नमक भर कर ले जाते थे.
लेकिन नमक के पहाड़ पर बसा गांव नगरोटा अब उजड़ने की कगार पर है. एक समय बेहद खूबसूरत और व्यवस्थित इस गांव की पुरानी हवेलियां, चौकियां, मंदिर, नौण और बावड़ियां सब ढहने की कगार पर है. मंडी रियासत के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय रहा. यह गांव अब पलायन का दंश झेलने को विवश है.
देबकु-जिंदू की प्रेमकथा का रंगमंच
नगरोटा गांव मंडी जनपद की एकमात्र प्रेम गाथा देबकु-जिंदू के प्रेम प्रसंग का रंगमंच भी है. उस जमाने में प्रेमी युगल के प्रेम प्रसंग को लोकगीत में ढालकर लोगो ने सदा के लिए अमर कर दिया. यह लोकगीत आज भी मंडी जनपद में लोकगीत के रूप में गाया जाता है.
हिंदुस्तान साल्ट माइंस से खफा हैं लोग
यही नहीं नमक की खदान के ऊपर बसे कई और गांव हुल्लु, कुलांदर, मसेरन, भराड़ा आदि गांवों की जमीन भी नमक की खान में हो रही खुदाई की वजह से धंसने लगी है. लोग हिंदुस्तान साल्ट माइंस के विरूद्ध लामबंद होने लगे हैं. लोगों का कहना है कि हिंदुस्तान साल्ट माइंस उनके विस्थापन और पुनर्वास की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है. जबकि यहां पर तीन सौ करोड़ का नमक आधारित कारखाना लगाने की घोषणा की जा रही है.
लोगों मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा के समक्ष भी अपने गुस्से का इजहार किया. नगरोटा निवासी कांत शर्मा ने बताया कि नमक के खान की वजह से उनकी जमीनें धंस रही है. नगरोटा के प्राचीन मंदिर, घर और पेयजल स्रोत खतरे में है. हालांकि, सांसद ने उन्हें आश्वासन दिया है कि केंद्र ही नहीं हिमाचल सरकार भी स्थानीय लोगों के रक्षा करेगी.
उन्होंने ग्रामीणों को आश्वासन दिया है कि नमक कारखाने के लिए आधुनिक तकनीक सोल्यूशन माइनिंग से लोगों की जमीन को खतरा नहीं होगा. लोगों के घरों और जमीन को जो नुकसान हुआ है वो पूर्व मे की गई खुदाई की वजह से हुआ है.