शिमला. हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, अपने खूबसूरत पहाड़ और मंदिरों के लिए विशेष रूप से पहचाना जाता है. पूरे प्रदेश में हजारों मंदिर और तीर्थ स्थल हैं, लेकिन मणिमहेश यात्रा की बात ही निराली है. यहां आकर श्रद्धालुओं के अंदर विशेष श्रद्धा का भाव उमड़ने लगता है. इस साल यह यात्रा 7 अगस्त से शुरु हो गई है.
मणिमहेश, हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है. इस पावन स्थल में हर वर्ष हजारों की संख्या में शिव भक्त मणि महेश झील में स्नान करने की इच्छा से आते हैं और विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि राधा अष्टमी के दिन सूर्य देव की पहली किरण जब कैलाश पर्वत पर पड़ती है तो शिखर पर प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग से चमत्कारिक मणि जैसी खूबसूरत आभा निकलती है.
ऐसी मान्यता है कि झील में सूर्य की किरणें पड़ते ही झील का पानी अमृत के समान हो जाता है. झील में नहाने से सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और सभी रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है. झील समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर है और उसके पूरब में कैलाश पर्वत है.
इस पवित्र स्थल पर तीर्थयात्रियों के अतिरिक्त अनेक सैलानी भी यहां आते हैं. इस मनमोहक जगह को देख कर लोग रोमांच से भर जाते हैं. इसकी सुंदरता बस देखते ही बनती है. यात्रा चंबा से शुरू होती है. यात्री भगवान शिव की चांदी की छड़ी लेकर चलते हैं. राख, खड़ामुख जगहों से होते हुए भरमौर पहुंचते हैं. चौरासी मंदिर के दर्शन के बाद राधा अष्टमी के दिन मणिमहेश पहुंचते हैं. जहां भगवान मणि महेश का मंदिर है. हिमाचली लोग राधा अष्टमी पर लगने वाले मेले में भी शामिल होते हैं. इस पवित्र जगह के बारे में बहूत सी कहानियां प्रचलित है, जिसमें शिवजी की भूमिका विशेष रूप से मानी जाती है.