शिमला (शिमला ग्रामीण). शिमला जिला के कुमारसैन उपमंडल के छोटे से गांव आहर की रहने वाली कुसुम सदरेट साल 2017 में सबसे ज्यादा चर्चा में रही. पहली बार कोई चुनाव लड़ने वाली कुसुम एकाएक बुलंदियों के आसमान पर जा पहुंची. नगर निगम शिमला के इतिहास में वह तीसरी ऐसी महिला बनी जिसे महापौर बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
इस साल जून महीने से पहले तक शायद ही कोई इस बेटी को जानता था. लेकिन किस्मत ने ऐसा रंग दिखाया कि रातों रात गांव की यह बेटी शिमला की मेयर बन गई. शिमला के अनाडेल वार्ड से पार्षद पद के लिए उतरी कुसुम खुद नहीं जानती थी कि उनका पहला ही चुनाव उन्हें निगम के सबसे बड़े पद पर पहुंचा देगा.
खुद कुसुम सदरेट कहती हैं कि वह सिर्फ पार्षद पद के लिए चुनाव मैदान में उतरी थी. ऐसा भी नहीं था कि वह भाजपा की सक्रिय कार्यकर्ता है हां, बस इतना था कि वह पार्टी से जुड़ी हुई थी. कुसुम न सिर्फ अपने वार्ड में चुनाव जीती बल्कि मेयर पद की दावेदार भी बन गई.
दरअसल निगम में मेयर पद इस बार आरक्षित वर्ग के लिए था. ऐसे में भाजपा में माथा पच्ची होने लगी कि आखिर किसे इस पद के लिए चुना जाए. करीब छह ऐसे दावेदार थे जो मेयर पद के लिए लाइन में लगे थे. लेकिन इन सबके बीचों बीच पार्टी ने ऐसे चेहरे पर दाव खेला जिसे शासन का जरा भी अनुभव नहीं था. लेकिन पार्टी का यह दाव रंग लाया. कुसुम न सिर्फ मेयर बनी बल्कि विरोधी खेमे को भी शांत रखने में कामयाब हुई. अब करीब पांच माह बाद कुसुम सदरेट शिमला नगर निगम को सफलता पूर्वक चला रही हैं. उनके औचक निरीक्षण से जनता को न सिर्फ राहत मिल रही है बल्कि सालों पुरानी समस्याओं का समाधान भी मिल रहा है.
परिवार का जिम्मा भी कंधों पर
कुसुम सदरेट की एक बेटी है जो स्कूल में पढ़ती है पति पेशे से अध्यापक हैं. शिमला के मेयर कार्यालय में सुबह दस से शाम करीब छह बजे तक कामकाज निपटाने वाली कुसुम घर का काम भी बखूबी करती है. इनमें परिवार के लिए खाना बनाना और बेटी को पढ़ाना भी शामिल है.
कुसुम कहती है कि शिमला के मेयर पद पर उन्हें जो जिम्मेदारी मिली है, उसे वह लग्न से निभाना चाहती हैं. इसीलिए जनता की समस्याएं और शिकायतें सुनने के लिए उनका कार्यालय हमेशा खुला रहता है. इसके अलावा वह वार्ड दौरों पर निकलकर खुद लोगों के बीच जाकर भी उनकी समस्याएं जान रही है.