कहते हैं महात्मा गांधी के काले होने की वजह से उन्हें दक्षिण अफ्रीका में फर्स्ट क्लास डिब्बे में यात्रा नहीं करने दी गई. उन्हें डिब्बे से धक्का देकर उतार दिया गया. इस घटना ने उनको बहुत बड़ा सदमा दिया और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया. उन्हें ऐसा धक्का लगा कि वह काफी देर तक स्टेशन पर ही बैठे रहे और किसी से बात नहीं की. एक समय तो उन्होंने मन ही मन भारत वापस जाने का भी सोच लिया था. लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि उनके साथ तो ऐसा पहली बार हुआ है. लेकिन यहां रह रहे भारतीय लोग तो हर रोज़ ऐसी घटनाओं का सामना करते हैं.
लेकिन असल में उस वक़्त गोरों ने सिर्फ़ महात्मा गांधी को ही धक्का नहीं दिया था. बल्कि अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत को धक्का दिया था. यही नहीं गोरों ने उन तमाम लोगों के हौसले को भी धक्का दिया था जो रंगभेद का शिकार थे और जिनके हौसले कहीं अंधेरे में गम थे.
बापू महज एक बार ही ऐसी घटना का शिकार नहीं हुए, बल्कि कई बार ऐसी ज़िल्लत से दो-चार होना पड़ा. लेकिन ऐसी घटनाओं ने उन्हें कमज़ोर करने के बजाय और ताक़त दी. उन्होंने ऐसी घटनाओं का सीधे तौर पर विरोध न करके दूसरा रास्ता अपनाया.
खुद ही काटे बाल
एक बार महात्मा बाल कटवाने गए. चूंकि नाई गोरा था, इसलिए उसने मोहनदास के बाल काटने से इनकार कर दिया और वहां से भगा दिया. काले होने की वजह से उन्हें एकबार फिर शर्मिंदा होना पड़ा. पहले तो गांधी को इस घटना ने बहुत दुखी किया. लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि वह नाई गोरा है और उसके यहां सब गोर ही बाल कटवाने आते हैं. यह उसकी मजबूरी रही होगी. अगर वह मेरे बाल काटता तो उसके यहां गोरे लोग आना बंद कर देते. जिससे उसका नुकसान हो जाता.
गांधी ने अब खुद ही बाल काटने का फैसला कर लिया था. आगे के बाल तो उन्होंने किसी तरह शीशे में देखकर काट लिए, लेकिन पीछे के बाल बहुत ही ख़राब कटे थे. जब महात्मा गांधी वकालत के सिलसिले में कोर्ट पहुंचे तो उनका खूब मजाक बना. लेकिन उन्हें इसका कोई बुरा नहीं लगा.
अब महात्मा गांधी खुद ही अपने बाल काटने लगे. शुरुआत में तो बाल सही नहीं कटे, लेकिन बाद में वह एक नाई की तरह ही खुद के बाल काटने लगे.
खुद ही सब काम करते
बाल काटने के अलावा मोहनदास खुद ही सब काम करते थे. झाड़ू लगाने से लेकर शौचालय साफ़ करने तक उन्हें कोई शर्म नहीं आती थी. उन्हें गंदगी बिलकुल भी पसंद नहीं थी. इस लिए जहां भी उन्हें गंदगी दिखती खुद ही सफ़ाई में लग जाते थे. लोग जब एक वकील को झाड़ू लगाता देखते तो खुद शर्मिंदा होकर उनके साथ हाथ बटाने लग जाते.
एक बार चप्पल टूट जाने के बाद उन्होंने इसको बनवाने के बारे में सोचा. लेकिन बाद में खयाल आया कि जो गोरा उनके बालों को हाथ लगाने के लिए भी तैयार न था, वह उनकी चप्पल कैसे छुएगा. अब गांधी ने खुद ही चप्पल बनाने का फैसला किया. वह ऐसे ही छोटे—छोटे काम बड़ी ही आसानी से कर जाते थे. उन्होंने कुछ ही समय में बेहतरीन चप्पल बनाने का हुनर सीख लिया था. अब वह खुद भी चप्पल बनाते और उनके साथ जुड़े लोगों को भी चप्पल बनाना सिखाते. जेल में रहने के दौरान भी उन्होंने कई चप्पलें बनाई.
यही नहीं गांधी कपड़े पर भी अच्छे से इस्त्री कर लेते थे. एक बार उनके गुरु गोपाल कृष्ण गोखले को कही जाना था. लेकिन उनके सबसे प्रिय कपड़े पर इस्त्री नहीं थी. अब अगर बाहर कपड़े पर इस्त्री कराने जाते तो बहुत समय लगता. गांधी ने कहा कि वह इस्त्री कर देंगे. लेकिन गोखले का सबसे प्रिय वस्त्र होने की वजह से वह नहीं माने. बाद में गांधी के बहुत समझाने पर वह मान गए. गांधी ने बहुत ही कायदे से अच्छे ढंग से इस्त्री कर दी. उनके गुरु यह देखकर काफ़ी प्रसन्न हुए और उस कार्यक्रम में चले गए.
ऐसी ही कई घटनाए हैं जिनसे अपनों के अलावा ग़ैर भी बापू के मुरीद हो जाते थे. ऐसे थे हमारे ‘महात्मा’. इन्ही आदतों ने उन्हें दक्षिण अफ्रीका में गांधी को ‘गांधी भाई’ बना दिया था.
(तथ्य- एक था मोहन)