एक और साल गुजर गया…वैसे ही जैसे पिछला गया था या उससे भी पिछला. बधाइयों, शुभकामनाओं का दौर जारी है. तमाम लोगों ने वीकेंड पर जाते साल के इस आनंद को दोगुना कर लिया. कई ऐसे भी हैं जो सोमवार को यानी साल के पहले दिन भी छुट्टी मना रहे हैं. ‘जाते को राम-राम, आते को सलाम’ की तर्ज पर सेलीब्रेशन जारी है. नए उत्साह, नई ऊर्जा के साथ नए साल के लिए कुछ प्रण लिए जाएंगे. पिछले साल की तरह कुछ टूट जाएंगे तो कुछ पूरे होंगे. सिलसिला यूं ही चलता रहेगा.
साल 2018 खास है कुछ मायनों में. संख्याओं की गणना करें तो इनका जोड़ 11 निकलता है. यानी यह साल 10 से 11 होने का साल है. 11 अंक शुभ माना जाता है भारतीय रीतियों में, गणित में खुद के अलावा किसी से विभाजित न होने वाले अंकों ‘प्राइम नंबर’ को महत्वपूर्ण माना जाता है. अंकशास्त्र और ज्योतिष भी ऐसी संख्याओं, जिनमें आगे और पीछे के अंक बराबर हों, को बेहतर आंकता है. जाहिर है इस साल से भी कुछ ऐसी ही उम्मीदें हैं, होनी भी चाहिए. मगर इसके लिए थोड़ा ठहरकर, पलटकर बीते साल की तरफ भी देखना होगा. हालांकि पलटकर देखने को कुछ विद्वान दुखों का सार कहते हैं मगर बीती हुई घटनाओं से यदि सबक लिया जाए तो यह पलटकर देखना सुखकारी हो सकता है.
बीते हुए साल की शुरुआत अजीब सी आपाधापी के साथ हुई थी. खुशियांं तो थीं मगर कुछ सहमी हुई सी. नोटबंदी के 50 दिन पूरे हो चुके थे और हुक्मरानों के वायदे कोई खास असर नहीं दिखा सके थे. अर्थशास्त्री चिंता जता रहे थे और आम जनता में अफरातफरी का माहौल था. फिर भी देश संभला, उठा और आगे बढ़ा. आंकड़ों में काफी कुछ गिरावट बताई गई, मुद्रास्फीति, जीडीपी, विकास दर का हवाला दिया गया. आम आदमी जो बमुश्किल बैंक की ब्याज दरें, इनकम टैक्स स्लैब और होम लोन की जोड़-तोड़ समझ पाता है, इन आंकड़ों को देखकर बेतरह डरा हुआ था. ‘देश गर्त में जा रहा है’ जैसी बातें उसके जेहन में कौंध रही थीं और हुक्मरानों को वह पानी पी-पी कर कोस रहा था.
‘यूनान-ओ-मिस्र-रोमा सब मिट गए जहां से, बाकी बचा है अब तक नामो निशांं हमारा…’ इकबाल ने यूं ही यह बात नहीं कही थी. कारवां बढ़ता गया और अर्थव्यवस्था में सुधार भी होने लगे. कड़े फैसले लेने की अगली कड़ी में सरकार ने जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) भी लागू कर दिया. जिसपर एक बार फिर विरोध के स्वर बुलंद हुए. दबाव में जीएसटी में कुछ संशोधन हुए जो अभी जारी हैं…
अर्थव्यवस्था से इतर इस साल ने विदेश नीति, खेल, सिनेमा आदि क्षेत्रों में भी कई बार खुश होने के मौके दिए. और आगे मुस्कुराने की उम्मीदें भी जगाईं. रेल हादसों समेत राजसमंद जैसी कुछ घटनाएं भी हुईं जिनपर शर्मिंदगी होती है. लेकिन साल के अंत में तीन तलाक पर सुकून भरी खबर मिली. ऐसे ही कश्मीर के आतंकवाद और अशांति फैलाने वाले पाकिस्तान के खिलाफ सेना की फ्रंट फुट पर की गई बैटिंग हर किसी को रास आई.
सोशल मीडिया पर पिछले दिनों एक संदेश चला कि ‘पता नहीं लोग नए साल का इतनी बेसब्री से इंतजार क्यों करते हैं, होना तो नए साल में कुछ भी नहीं है…’. संदेश मजाकिया लहजे में था मगर इसमें बड़ा संदेश छिपा था. एक बार सोचिए कि एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम अपने आसपास किस तरह के बदलाव कर सकते हैं. यह किसी बेरोजगार को काम दिलाने से लेकर किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई का पूरा या कुछ हिस्सा वहन करके भी हो सकता है. हम अपने आसपास साफ-सफाई में किस तरह योगदान कर सकते हैं. यह सब न भी हो सके तो यही प्रण लें कि हम इस साल ट्रैफिक नियमों का पूरा-पूरा पालन करें.
किसी विद्वान ने कहा है कि हंसी संक्रामक होती है. हम जब खुद हंसते-मुस्कुराते हैं तो अनजाने में ही हम आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बना देते हैं. नए साल पर सभी ने जश्न मनाया है. जश्न के बाद भी उस हंसी-मुस्कुराहट को बरकरार रखें. सपने देखें, संकल्प लें, उम्मीद करें और अपने साथ-साथ अपने इर्दगिर्द भी खुशियां फैलाने के बारे में सोचें, अगल-बगल दिखने वाले सबसे तंगहाल-परेशान व्यक्ति का जीवन स्तर उठाने के बारे में सोचें…देखिएगा 11 वाला यह साल वाकई शुभ परिणाम लेकर आएगा.