शिमला. मुख्यमंत्री सुखविंद्र सुक्खु ने कहा कि प्रदेश सरकार राज्य में भांग की खेती को वैध बनाने की दिशा में विचार कर रही है, जिससे राज्य के लिए राजस्व अर्जित होगा. यह औषधीय और औद्योगिक क्षेत्र के लिए भी कारगार साबित होगी.
कृषि के अध्ययन के लिए पांच विधायकों की कमेटी गठित
भांग के औषणीय गुणों के इस्तेमाल से कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अवसाद आदि से ग्रसित मरीजों को काफी राहत मिलती है. मुख्यमंत्री ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने भांग की खेती का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया है, जिसमें पांच विधायकों को सदस्य बनाया गया है. समिति उन इलाकों का दौरा करेगी, जहां भांग की अवैध खेती होती है. सभी पहुलुओं का गहनता से अध्ययन करने के उपरांत एक महीने के भीतर कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपेंगी. इसी के आधार पर भांग की खेती को वैध करने के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि विश्व के कई देशों में भांग की खेती को कानूनी मान्यता दी गई है. देश के कई राज्यों में भी भांग की खेती को कानूनी दायरे में रखा गया है. उत्तराखंड वर्ष-2017 में भांग की खेती को वैध करने वाला देश का पहला राज्य बना था.
भांग की खेती राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है- CM
इसके अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी भांग की नियंत्रित खेती की जा रही है. प्रदेश सरकार इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय लेगी. सीएम सुक्खू ने कहा कि भांग की खेती राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इसका इस्तेमाल नशे के तौर पर न हो. भारत की संसद में वर्ष 1985 में एनडीपीएस अधिनियम के तहत भांग को परिभाषित किया था, जिसके तहत भांग के पौधे से राल और फूल निकालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन यह कानून औषधीय और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती की विधि और सीमा निर्धारित करता है. अधिनियम की धारा 10(ए) के अंतर्गत राज्यों को किसी भी भांग के पौधे की खेती, उत्पादन, कब्जा, परिवहन, खपत, उपयोग और खरीद तथा बिक्री, भांग की खपत के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देती है. राज्यों को सामान्य या विशेष आदेश द्वारा, केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने या बागबानी उद्देश्यों के लिए भांग की खेती की अनुमति देने का अधिकार है.