भारत के राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार की घोषणा के बाद कुछ अप्रत्याशित नहीं होता. सत्तासीन पार्टी के समर्थित उम्मीदवार की जीत करीब-करीब तय मानी जाती है. मतदान के बाद एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा है. उनके पास 70 फीसदी मतदाताओं का समर्थन है.
यह भाजपा की एक और जीत है. हाल में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिली है. इसके साथ ही दिल्ली और शिमला नगर पालिका चुनाव में भी भाजपा ने जीत कर विपक्षी पार्टियों को डरा दिया है.
फिलहाल, कांग्रेस राज्यसभा में बहुमत की स्थिति में है और देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी है. इस तरह कांग्रेस अन्य विपक्षी पार्टियों का नेतृत्व करने की क्षमता रखती है. राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए समर्थित उम्मीदवार की जीत की संभावना भले ही कम हो, लेकिन यह आगामी लोकसभा चुनाव की पीठिका जरूर तय करने वाली है.
राष्ट्रपति चुनाव ने कांग्रेस को विपक्ष का नेतृत्व करने का मौका दिया. लेकिन कांग्रेस विपक्षी एकता कायम करने में फेल होती दिख रही है.राष्ट्रपति चुनाव में कई दलों के मतभेद सामने आ गया. बिहार में भाजपा के विजय रथ को चुनौती देने वाला जदयू-राजद-कांग्रेस का महागठबंधन राष्ट्रपति चुनाव के सरगर्मी के बाद खतरे में है.
वहीं, समाजवादी पार्टी का घरेलू मतभेद एक बार फिर सुलगने लगा है. मुलायम सिंह और उनके समर्थक अपने पार्टी लाइन से अलग भाजपा के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन देने की बात कही है.
राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता अपने पार्टी लाइन से अलग जाकर वोट कर सकते हैं. पिछले राष्ट्रपति चुनाव में जदयू ने अपने यूपीए के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी को वोट भी किया था. तब, जदयू राजग की हिस्सा थी. राजग की एक अन्य सहयोगी पार्टी शिवसेना ने भी यूपीए उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था. बावजूद, राजग गठबंधन पर कोई खास असर नहीं पड़ा था.
जबकि बिहार में जदयू के द्वारा राजग के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने से महागठबंधन का भविष्य भी दांव पर लग गया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार के राजनीति में बड़ा फेर-बदल देखने को मिल सकता है.
भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की दो तिहाई राज्यों में सरकारें हैं. लोकसभा में भाजपा बहुमत में पहले से ही है. हाल के विधानसभा चुनाव के बाद राज्यसभा में भाजपा के सांसदों की संख्या बढ़ने वाली है. राष्ट्रपति के भाजपा समर्थित होने के बाद ये समीकरण किस तरह बदलेंगे ये देखना दिलचस्प होगा.
संसदीय लोकतंत्र में सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाये रखने में विपक्ष की अहम भूमिका होती है. ऐसे हालात में विपक्ष की एकता और कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता एक सफल लोकतंत्र के लिए अपेक्षित हो जाता है. 15वें राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा किसी एक नाम पर सभी पार्टियों को एकजुट नहीं कर पाई. लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस को अलग-थलग करने में उसे बड़ी सफलता मिली है. राष्ट्रपति चुनाव के बाद विपक्षी एकता की मुहिम को बड़ा धक्का लगा है. साथ ही, कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं.
जदयू नेता नीतीश कुमार ने कांग्रेस को ‘विकल्प की राजनीति’ करने की सलाह दे डाली है. हालांकि उन्होनें अब भी कांग्रेस के नेतृत्व पर भरोसा जताया है. अब देखना होगा कि दो साल बाद होने वाले, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस भरोसे पर कितना खरा उतर पाती है.