शिमला. नगर निगम चुनाव के बाद अब प्रदेश में विधान सभा चुनाव के लिए कुछ ही समय बाकी रह गया है. इसके बावजूद कांग्रेस ‘बागियों’ को लेकर कोई फैसला नहीं ले पाई है. आलम यह है कि अनुशासन समिति की सिफारिशों के बाद भी मामले पर अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है.
हां, यह जरूर बताया जा रहा है कि सरकाघाट हल़के से निष्कासित चल रहे यदुपति ठाकुर को बहाली जरूर मिल सकती है और कांग्रेस इस पर जल्द अपना कोई निर्णय सुना सकती है. वह भी तब जबकि युवा नेता यदुपति, मुख्यमंत्री वीरभद्र और युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह के करीबी हैं.
वीरभद्र चाहतें हैं बागियों की वापसी
मालूम हो कि वीरभद्र की पैरवी के बाद ही कांग्रेस अनुशासन समिति ने भी बीते मई माह में बागियों की वापसी किए जाने की सिफारिश की थी,इसके बावजूद मामला अधर में लटका हुआ है. इस मसले पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी अभी तक कोई उचित कदम नहीं उठाया है. यदि बागियों की वापसी नहीं होती है तो संगठन को विधान सभा चुनाव में इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ सकता है.
इसका मुख्य कारण कई कद्दावर नेताओं का बागियों की फेहरिस्त में शामिल होना है जो पार्टी प्रत्याशियों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं. वर्तमान में हिमाचल कांग्रेस के करीब 33 नेता और पदाधिकारी संगठन से निलंबित चल रहे हैं. इनमें 4 पूर्व विधायकों में देहरा से योगराज, घुमारवीं से कश्मीर सिंह, आनी से ईश्वर दास और करसोग से मस्त राम शामिल हैं.
कांग्रेस ने अपनों को बनाया बेगाना
चुनावी समय में जहां अक्सर बेगानों को भी अपना बनाने की कवायद रहती है. वहीं, कांग्रेस ने हाल ही में हुए नगर निगम, शिमला चुनाव में अपनों से ही बिगाड़ ली और उन्हे बागी करार दे दिया. हुआ यूं कि निगम चुनाव के पार्टी चुनाव चिन्ह पर न होने के कारण पहले कांग्रेस ने अधिकृत प्रत्याशी न देने का निर्णय लिया और फरमान जारी कर दिया गया कि जो चाहे कार्यकर्ता चुनाव लड़ लें. सभी स्वतन्त्र हैं.
बागी बनने का सफर
जब एक वार्ड से दो-दो, तीन-तीन कांग्रेस के प्रत्याशी खड़े हो गए तो कांग्रेस ने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी. साथ ही निर्णय सुना दिया कि जिन्हें अधिकृत नहीं किया गया है अपना नाम वापस ले लें. जिन्होंने ऐसा नहीं किया उन पर बागी का तमगा लगा दिया गया. उनकी नाराजगी भी आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है.