शिमला. ओपन मार्केट से उठाए जा रहे लोन पर हिमाचल सरकार को कुछ राहत मिली है. केंद्र सरकार ने 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को मानते हुए राज्यों को कुल लोन लिमिट का इस्तेमाल वित्त आयोग के पूरे कार्यकाल के दौरान करने की अनुमति दे दी है. 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें फिलहाल वर्ष 2021 से 2026 तक लागू रहेंगी.
हिमाचल सरकार इस अवधि में किसी साल सरेंडर की गई लोन लिमिट का इस्तेमाल वर्ष 2026 तक कर सकती है. इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी वर्ष राज्य सरकार अपने लोन लिमिट का पूरा इस्तेमाल नहीं करती और बची हुई लिमिट 31 मार्च को सरेंडर हो जाती है, तो उसका इस्तेमाल अगले साल भी किया जा सकेगा.
सामान्य तौर पर हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम यानी एफआरबीएम एक्ट लागू होने के बाद सकल राज्य घरेलू उत्पाद का कुल चार फीसदी ही लोन ले सकता है.
1,500 करोड़ लोन की नोटिफिकेशन जारी
वार्षिक आधार पर यह राशि करीब 7,000 करोड़ बनती है. हालांकि वर्तमान वित्त वर्ष में भी अब तक 8,000 करोड़ लोन लिया जा चुका है और 1,500 करोड़ और लिया जा रहा है. इस लिमिट के टूटने के कारण सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एफआरबीएम एक्ट को संशोधित कर इस लिमिट को चार फीसदी से बढ़ाकर छह फीसदी कर दिया है. इसी कारण इस साल राज्य का लोन भी 10,000 करोड़ की लिमिट को पार कर जाएगा. किसी एक साल में लिया जाने वाला यह सबसे ज्यादा लोन होगा. अब तक राज्य सरकार पर 75,000 करोड लोन हो चुका है और इस वित्त वर्ष के अंत तक यह राशि और बढ़ेगी. लोन के मामले में कई बार ऐसा भी होता है कि पूरी लिमिट का इस्तेमाल न हो.
पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार में भी एक साल लोन को सरेंडर किया गया था. तब यह जोखिम था कि सरेंडर की गई लिमिट को दोबारा लिया जा सकेगा या नहीं? लेकिन इस बारे में अब राहत मिल गई है. 15वें वित्त आयोग ने अभी अपनी सिफारिशें सिर्फ पांच साल की अवधि के लिए दी हैं, जो 2026 तक लागू हैं.
11,000 करोड़ कर्मचारियों की ही देनदारी
हिमाचल सरकार की ऋण पर निर्भरता अब इसलिए भी है, क्योंकि कर्मचारियों कि प्रतिबंध देनदारियों का भुगतान अभी लंबित है. राज्य सरकार के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही कर्मचारियों के पे-कमीशन एरियर का 4,500 करोड़, पेंशनरों के एरियर का 5,500 करोड़ और महंगाई भत्ते के रूप में 1,000 करोड़ से ज्यादा की देनदारी अभी बाकी है. अगले दो साल में राज्य सरकार को यह भुगतान करना है.