नई दिल्ली. एक शताब्दी से भी अधिक गुजरे जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो उन्होंने चरखा देखा तक नहीं था. मगर स्वदेशी आंदोलन के दौरान वह राष्ट्रीय जीवनशैली का अनुसरण करते हुए बड़े मनोयोग से चरखा चलाने लगे थे. समय के चक्र के साथ एक समय ऐसी भी आया जब खादी की चमक फीकी पड़ गयी, मगर आज खादी एक बार फिर चमक रही है. फैशन से कदमताल करते हुए खादी आज सबकी पसंद बन रही है. आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं.
खादी की बिक्री में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी
खादी और ग्राम उद्योग आयोग ( केवीआइसी ) ने अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में खादी उत्पादों की बिक्री करीब 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 2005 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गयी जबकि इससे पिछले साल यह 1510 करोड़ रुपये रही थी. ब्रिकी के आंकड़ों में जबरदस्त उछाल को देखकर आलोचकों के मन में भले ही संशय हो, लेकिन वस्तु स्थिति और वास्तविकता का अनुमान किसी भी खादी भंडार या खादी बिक्री केन्द्र पर खरीदारी के लिए आए लोगों की उमड़ती भीड़ और उनके फूट फॉल्स के आंकड़ों से लगाया जा सकता है.
खादी और ग्राम उद्योग आयोग की स्थापना 1957 में भारत की आजादी के वस्त्र खादी की अनोखी खूबियों का फायदा उठाने, ग्रामीण हस्तशिल्पियों के उत्थान और खादी कार्यक्रम को देश की नियोजन प्रक्रिया के साथ समन्वित करने के उद्देश्य से की गई थी. आज खुरदरे खादी वस्त्र के साथ-साथ हाथ के कते हाई काउंट धागे से बने वस्त्रों की बड़ी मांग है और खादी का फैशन जोर पकड़ता जा रहा है. अब खादी जबरदस्त ‘फैशन स्टेटमेंट’ यानी फैशनेबल लोगों की पहचान बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है.
2018-19 के अंत तक 5000 करोड़ की बिक्री का लक्ष्य
हाल में खादी और ग्राम उद्योग आयोग ने एक बयान में कहा था, ‘’वर्ष 2016-17 में खादी उत्पादों की बिक्री में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया. हमे सरकारों, कंपनियों, स्कूल-कालेजों और राज्य सरकारों आदि की तरफ से भारी-भरकम ऑर्डर मिल रहे हैं. 2018-19 के अंत तक हम 5000 करोड़ रुपये की बिक्री के लक्ष्य को हासिल कर लेंगे।’’
खादी और ग्राम उद्योग आयोग अपने उत्पादों की विदेशों में बिक्री बढ़ाने के लिए निर्यात प्रकोष्ठों की स्थापना भी कर रहा है. खादी के बारे में आम धारणा है कि यह महात्मा गांधी की गौरवशाली विरासत है और राष्ट्रीय स्वतंत्रता का सशक्त माध्यम रही है. इसकी सबसे बड़ी खूबी जिसकी वजह से यह बिकती है, वह यह है कि यह कुदरती है, हाथ से तैयार की जाती है, पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है, जैव-अपघटनीय (यानी सड़कर नष्ट हो जाने वाली) है और इस रेशे को बनाने में किसी के शोषण का सहारा नहीं लिया जाता.
खादी एक ऐसा कपड़ा है जो हाथ से काते गये धागे से ही बनाया जाता है. इसे बनाने में सूत, ऊन और रेशम का इस्तेमाल किया जाता है. धागे में घुमाव की दिशा से खादी की पहचान की जा सकती है. खादी के धागे में घुमाव की दिशा अंग्रेजी के ‘S’ अक्षर की तरह होती है जिसे आम तौर पर बांयी ओर का या घड़ी की सूइयों की विपरीत दिशा का घुमाव माना जाता है.
देश में 1.42 लाख बुनकर और 8.62 लाख कातने वाले कारीगर
इस समय देश में 1.42 लाख बुनकर और 8.62 लाख कातने वाले कारीगर हैं. इनमें से बहुत से अपने हुनर के लिए अच्छे मेहनताने की मांग करते हैं. एक अनुमान के अनुसार 9.60 लाख चरखों और 1.51 लाख करघों में खादी बनती है. अधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन वर्षों में खादी और ग्राम उद्योंगों में रोजगार में 13 लाख लोगों का इजाफा हुआ है. इस क्षेत्र में कुल 144 लाख लोगों को रोजगार मिला है. खादी कारीगरों के लिए कर्मशालाएं उपलब्ध कराने के कार्यक्रम के तहत खादी और ग्राम उद्योग आयोग ने 43.15 करोड़ रुपया जारी किया जिससे 9057 कारीगरों को लाभ हुआ.
इसी तरह मौजूदा कमजोर खादी संस्थाओं को सुदृढ़ करने तथा विपणन के बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद के लिए खादी और ग्राम उद्योग आयोग को पिछले तीन वर्षों में 15.50 करोड़ रुपये दिये गये जिससे 108 खादी संस्थाओं और 187 खादी बिक्री केन्द्रों का जीर्णोद्धार किया गया.
सात लाख कुटीर इकाइयों
खादी और ग्राम उद्योग के उत्पादों का उत्पादन निजी स्वावित्वव वाली करीब सात लाख कुटीर इकाइयों में होता है जिनके लिए प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है. केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अनुसार सार्वजनिक उद्यमों और कंपनियों, जैसे दिल्ली पुलिस, एयर इंडिया, एनटीपीसी, प्रधानमंत्री कार्यालय, ओएनजीसी और रेलवे से बड़ी तादाद में एकमुश्त सप्लाई के लिए बल्क ऑर्डर मिले हैं.
नए आदर्श चर्खा कार्यक्रम के तहत बेहतरीन कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खादी और ग्राम उद्योग आयोग ने कुट्टूर (केरल), चित्रदुर्ग (कर्नाटक), सिहोर (मध्य प्रदेश), एटा और राय बरेली (उत्तर प्रदेश) और हाजीपुर (बिहार) में छह सेंट्रल सिल्वर प्लांट्स स्थापित किए हैं.
गरीबी दूर करने का हथियार है चरखा
अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में महात्मा गांधी ने कहा था : 1908 में ‘हिंद स्वराज’ में जब मैंने चरखे या हथकरघे को भारत में मुफलिसी को दूर करने की रामवाण दवा बताया था तो मुझे याद नहीं कि तब तक मैंने कभी इन्हें देखा था. असल में 1915 में जब मैं दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटा तब भी मैंने चरखा नहीं देखा था। 1917 में मेरे गुजराती मित्र मुझे भरुच शिक्षा सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिए वहां लेकर गए. यहीं मेरी मुलाकात एक विलक्षण महिला गंगा बेन मजूमदार से हुई जिन्होंने….ईमानदारी से चरखे की तलाश लगातार जारी रखने का वचन लेकर मेरा बोझ हल्का कर दिया.