शिमला. राजस्थान के पूर्व डिप्टी CM सचिन पायलट ने भाजपा राज में हुए करप्शन के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने के मुद्दे पर अनशन की घोषणा करके सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पायलट ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जिस अंदाज में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेरा है, इसे कांग्रेस में फिर नई लड़ाई की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है.
लंबी खामोशी के बाद पायलट ने CM पर हमला क्यों किया?
पायलट बीच में आक्रामक होने के बाद शांत हो गए थे. 8 अप्रैल को राहुल गांधी के समर्थन में यूथ कांग्रेस के मशाल जुलूस में हिस्सा लिया. रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक्शन नहीं होने का तर्क देकर अनशन की घोषणा कर दी. इसे सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
सचिन ने कांग्रेस हाईकमान के सामने डिमांड और सुझाव रखे थे. इनमें से कोर मुद्दों पर अब तक एक्शन नहीं हुआ. पायलट पर उनके समर्थकों और गहलोत विरोधी माहौल का भी दबाव था. इसलिए उन्हें कोई न कोई सियासी स्टैंड लेना जरूरी था. पायलट ने उसी रणनीति के तहत करप्शन का मुद्दा उठाकर सीएम को घेरने का प्रयास किया है.
वसुंधरा-गहलोत सरकार के बीच कोई मिलीभगत है, पायलट का इशारा किस ओर है?
प्रदेश की सियासत में लंबे समय से गहलोत और वसुंधरा राजे के बीच मिलीभगत के आरोप लगते रहे हैं. कांग्रेस की बैठकों तक में ये आरोप लगे हैं. दूसरी पार्टियां भी लंबे समय से मिलीभगत के आरोप लगाती रही हैं. इन्हें सियासी आरोपों के तौर पर ही देखा गया.
मिलीभगत का आरोप गहलोत और राजे के राजनीतिक विरोधियों का एक पसंदीदा नैरेटिव भी रहा है. इसका ही अब पायलट ने सहारा लिया है. पायलट ने भी विरोधियों के बहाने वही आरोप लगा दिया है. मिलीभगत के आरोप सियासी हैं, लेकिन विरोधी खेमा पुराने उदाहरण भी गिनाता है.
इस अनशन के पीछे पायलट की रणनीति क्या है?
पायलट ने करप्शन के मुद्दे पर अनशन पर बैठने की घोषणा करके हाईकमान को दुविधा में डाल दिया है. पायलट ने BJP के करप्शन पर कार्रवाई का मुद्दा बनाया है. हाईकमान चाहे तो इसे अनुशासन का मुद्दा बनाकर जवाब तलब कर सकता है, लेकिन सियासत में वक्त देखकर फैसले लिए जाते हैं.
कांग्रेस के लिए यह बहुत नाजुक वक्त है, कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं की लाइन लगी है, ऐसे वक्त में हाईकमान नहीं चाहेगा कि जिस नेता को असेट कहा, उसके खिलाफ एक्शन लिया जाए. हालांकि इस पूरे मुद्दे पर गहलोत के साथ हाईकमान को भी डैमेज कंट्रोल का तरीका तो खोजना ही पड़ेगा.
एक दिन के अनशन से गहलोत पर दबाव कैसे बना पाएंगे पायलट?
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व डिप्टी CM रहा हुआ कोई नेता अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे तो दबाव पड़ना स्वाभाविक है. विपक्ष इसे सरकार को घेरने के तौर पर देखेगे. मिलीभगत के आरोपों को और बल मिलेगा.
पायलट के अनशन से गहलोत खेमा प्रेशर में आएगा और पायलट अपनी सियासी लाइन का मैसेज भी दे देंगे. इस पूरे घटनाक्रम में नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा, क्योंकि चुनाव से आठ महीने पहले अगर पार्टी का स्टार प्रचारक अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करे तो खींचतान का अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने खराब हैं.